For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे (ग़ज़ल 'राज')

२२   २२  २२  २२  २२  २२  २२  २२  

अवशेष चिनारों के तुमसे आफ़ात पुरानी  कह देंगे

हालात वहाँ कैसे बिगड़े खुद अपनी जुबानी कह देंगे

 

 दीवारें धज्जी धज्जी सी हर छत दिखती उधड़ी उधड़ी                     

 आसार लहू के अक्स तुम्हें बेख़ौफ़ कहानी कह देंगे

 

दिखते पर्वत सहमे-सहमे औ गुम-सुम से झरने नदियाँ   

कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे  

 

जो साथ जला करते थे कभी आबाद रहे जिनसे आँगन

वो आज अल्हेदा चूल्हे खुद दिल की वीरानी कह देंगे

 

चुपचाप सुलगते शोलों में इतिहास झुलसते देखा है 

तुम राख़ कुरेदोगे जितनी वो पीर रूहानी कह देंगे

 

सब  डाल यहाँ सूखी-सूखी हर फूल पे छाई  मुर्दाई   

मौसम ने कितने जख्म दिए सब उसकी निशानी कह देंगे

 

उम्मीद पे जीना कायम है उम्मीद नहीं तो क्या जीना

जो वक़्त पकड़ कर साथ चले उसे उम्रे रवानी कह देंगे

 (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 31, 2014 at 5:17am

बहुत ही सुन्दर गज़ल। पढ़ कर आनन्द आया। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 6:28pm

आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी ,ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर प्रसन्न हूँ ,दिली आभार आपका |

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 30, 2014 at 5:40pm

चुपचाप सुलगते शोलों में इतिहास झुलसते देखा है
तुम राख़ कुरेदोगे जितनी वो पीर रूहानी कह देंगे

! क्या बात है  बधाइयाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 4:16pm

आ० डॉ गोपाल नारायण जी,आपकी इस उत्साह वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया की बेहद शुक्रगुजार हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ |सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 4:14pm

आ० गिरिराज जी,ग़ज़ल आपको अच्छी लगी तहे दिल से आभार आपका | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2014 at 1:49pm

आह--------

महनीया , इतनी सुन्दर गजल  i किस किस शेर की तारीफ कर्रूँ i  मै निःशब्द हूँ i  सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 1:36pm

आदरणीया राजेश जी , बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है , सभी आशआर  अच्छे लगे | पूरी ग़ज़ल के लिए आपको बधाइयाँ ||


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 9:50am

आ० डॉ विजय शंकर जी,आपको ग़ज़ल उसके भाव प्रभावित कर सके तहे दिल से आभारी हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हुआ सादर . 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 30, 2014 at 9:28am
चुपचाप सुलगते शोलों में इतिहास झुलसते देखा है
तुम राख़ कुरेदोगे जितनी वो पीर रूहानी कह देंगे
कोई लाख छुपाये कहानियां हर गम और दर्द अपना
जीवन बहता पानी ,आंसू अपनी जुबानी कह देंगें
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , प्रशस्ति में मेरी दो लाइने , सादर आदरणीय राजेश कुमारी जी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2014 at 11:26pm

जितेन्द्र भैया ,ग़ज़ल पर सर्वप्रथम प्रतिक्रिया और होंसलाफ्जाई का हार्दिक आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service