For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कँपकपी - एक अतुकांत चिंतन ( गिरिराज भंडारी )

कँपकपी

********

तुम कौन हो भाई ?

जो शीत से कँपकपाती मेरी देह की कँपकपी को झूठी बता रहे हो

शीत एक सत्य की तरह है

और कंपकपी मेरी देह पर होने वाला असर है

शीत-सत्य पर मेरा अर्जित अनुभव , व्यक्तिगत  , सार्वभौमिक तो नहीं न

 

क्या तुम्हारे माथे पर उभर आयीं पसीने की बून्दें भी झूठी है

क्या मैने ऐसा कहा कभी ?

ये तुम्हारा व्यक्तिगत अनुभव है , इस मौसमी सच की आपकी अपनी अनुभूति

तुम्हारी देह की प्रतिक्रिया पसीना है , तो है , इसमे गलत क्या है ?

 

इससे मेरी कँपकपी झूठी तो नहीं हो जाती , और न ही पसीना झूठा है

कम से कम इतना ज्ञान तो आपेक्षित ही है , सभ्य मनुष्यों से 

 

सत्य कभी खुद बोला ही कहाँ , वो तो सदा से मौन है

 

बोलते तो हमारे अनुभव हैं ,

जितनी देह उतने अनुभव , उतने सत्य

जो एक व्यक्तिगत सच से जादा महत्वपूर्ण कभी नही रहा , और न कभी होगा

और अनुभव , जिसकी गहराई तुम्हारी स्मृति से जादा नहीं है

और स्मृतियाँ, सत्य की गहराई के मुकाबले बहुत उथली होतीं है

क्योंकि सत्य का कोई संबन्ध स्मृति से है ही नहीं  , वो स्मृतियों से परे हैं

स्मृतियाँ जब भी बात करेगी अर्जित अनुभवों से ही करेगी

सत्य याद करने की वस्तु नहीं , दुहरा लिये और यादों में शामिल कर लिये ,

वक़्त ज़रूरत मे उगल दिये , स्मृतियों के सहारे

 

मैने सुना है ,

सत्य उद्घाटित होता है , अनुसंधान किया जाता है सच का

मौन में , मौन के अन्धकार में , एक प्रकाश की तरह उदित होता है सत्य

और उद्घाटित करने वाला कभी भी बता नही पाया /पाता , सत्य क्या है ,  

क्योंकि , बताने के लिये तो स्मृतियों से ही शब्द लिये जायेंगे न

और स्मृति बहुत उथली है , सत्य के मुकाबले तो और भी जादा उथली

फिर मेरी कँपकपी तो मेरा सत्य है , केवल मेरा

फिर तुम कौन हो भाई ?

मेरी देह की कँपकपी को झूठी बताने वाले ॥

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 3:54pm

आदरणीय भाईसाब ..आप तो दार्शनिक हो गए ..क्या कमाल का बिचार है ..बिलकुल सही कहा है आपने जिसने जो जाना उसे सत्य मन बैठा ..सत्य तो सत्य है अत्यंत गंभीर बिषय पर इस अत्यंत सहज चिंतन के लिए आपको ढेरों बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 11:39am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 28, 2014 at 12:12am

एक बहुत गहरी सोच लिए चिंतन ,साझा किया है आपने आदरणीय गिरिराज जी. सत्य कभी खुद  बोला ही कहाँ ,वो तो सदा से मौन ही है . इस पंक्ति में शायद सारी रचना का सार है. बहुत -२ बधाई आपको इस श्रेष्ठ रचना पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2014 at 6:14pm

आदरणीय बड़े भाई , रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया केलिये आपका आभारी हूँ ॥

टंकण की गलती के लिये क्षमा ! आपके इंगित जगह के अलावा एक जगह और भी है गलती , मै अभी संशोधित कर ले ता हूँ ।सादर आभार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 26, 2014 at 5:27pm

मित्र

आपके विचारो की परिपक्वता असंदिग्ध है  i बहुत ही तन्मय और गहरी सोच -----i एक टंकण की त्रुटि खटकती है - एक सभ्य  मनुष्यों से i  हम सभी टाइप की गल्ती  कर जाते हैं i  यह आपकी एक और श्रेष्ठ  रचना है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2014 at 4:23pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना को आपका अनुमोदन मिलना मेरे लिये बड़ी खुशी की बात है , अनकहा सच तक पहुँचने के लिये और रचना की  सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2014 at 4:20pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के उन्मुक्त भाव से सराहना के लिये आपका आभारी हूँ । आदरणीय , रचना के सम्रर्थन  मे दी गई  सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2014 at 3:44pm

बोलते तो हमारे अनुभव हैं ,

जितनी देह उतने अनुभव , उतने सत्य

जो एक व्यक्तिगत सच से जादा महत्वपूर्ण कभी नही रहा , और न कभी होगा

और अनुभव , जिसकी गहराई तुम्हारी स्मृति से जादा नहीं है

और स्मृतियाँ, सत्य की गहराई के मुकाबले बहुत उथली होतीं है

क्योंकि सत्य का कोई संबन्ध स्मृति से है ही नहीं  , वो स्मृतियों से परे हैं

स्मृतियाँ जब भी बात करेगी अर्जित अनुभवों से ही करेगी

सत्य याद करने की वस्तु नहीं , दुहरा लिये और यादों में शामिल कर लिये ,

वक़्त ज़रूरत मे उगल दिये , स्मृतियों के सहारे ..

इन पंक्तियों के माध्यम से बहुत कुछ अनकहा साझा हुआ है आदरणीय गिरिराज भाई.

दिल से बधाई स्वीकार करें..

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 26, 2014 at 1:31pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,
बधाई . आप सत्य की खोज में निकल पड़े . बधाई . आप ने सही लिखा , " सत्य कभी खुद बोला ही कहाँ , वो तो सदा से मौन है " . यह शिकायत तो संभवतः बहुतों को होगी कि सत्य मौन रहता है। बहुत अच्छी रचना है , बधाई. लगभग तीन माह पूर्व सत्य पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी, अन्यत्र प्रकाशित , यहां आपके समर्थन में रख रहा हूँ .
सच
कोई आश्चर्य नहीं है|
सच कुछ है
कि नहीं है
प्रश्न यह भी नहीं है |
प्रश्न तो यह है कि
लोग जिसे सदियों से
ढूंढ रहे है , वो सच
है कि नहीं है |
ये झूठ है, वो झूठ है ,
सब जो हम जानते है ,
वो सब झूठ है |
हजारों हजार साल से
हम जो सच खोज रहें हैं ,
मिला नहीं , मिलता नहीं |
सच यह भी है कि
हजारों हजार साल से
हम करोंड़ों झूठ में जी रहें हैं |
कहते हैं कि सच में
बड़ी शक्ति होती है
अगर वो इतना शक्तिमान है ,
तो क्यों छुपा बैठा है हमसे ?
क्यों नहीं सामने आता और
कमजोर झूठ को मिटा देता है. |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service