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लघुकथा : भुट्टे वाली (गणेश जी बागी)

            "भुट्टे ले लो, हरे ताजे भुट्टे ले लो !" हर रोज सुबह-सुबह मैले कुचैले कपडे पहने, सर पर टोकरी लिए भुट्टे वाली कॉलोनी में आ जाती थी, मैं तो उसकी आवाज़ से ही जगता था ।

                    आज सुबह किसी की तेज डाँटने की आवाज़ सुनकर बालकोनी में चला आया, भुट्टे वाली महिला को मेरे पडोसी सिंह साहब डाटे जा रहे थे।

                   "कमबख्त सुबह सुबह चिल्ला कर नींद हराम कर देती है, चैन से सोने भी नहीं देती, अगर कल से इस कॉलोनी में चिल्लाई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा"

                    भुट्टे वाली के आँखों में आँसू थे, जाते-जाते केवल यही कह पायी, "बाबूजी माफ़ कर दीजिये, लेकिन का करूँ, अगर न चिल्लाऊं तो मेरे बच्चे चैन से नहीं सो पायेंगे ।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Shyam Narain Verma on July 22, 2014 at 5:47pm
बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको,,,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 3:26pm

असर-असर की बात है. लघुकथा में सामाजिक विद्रुपता खूब उभर कर आयी है.

हार्दिक बधाई स्वीकार करें, गणेश भाई

Comment by rawal rajesh on July 22, 2014 at 11:50am

shabd nahi par marmik shabdo me bhawana ke badhaiyan swekaren

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 22, 2014 at 11:12am

आदरणीय बागी जी

बच्चे चैन  से सौएँ इसके लिए माँ को सुबह सुबह चिल्लाना पड़ता है और माँ का यह चिल्लाना किसी को जगाता है तो किसी की नीद में खलल डालता है i  इसी सामाजिक विद्रूप  को आपने शब्दों के बेहतरीन ताने बने मे पिरोया है i आपको मेरी बधाई i

Comment by aman kumar on July 22, 2014 at 10:57am

गरीब की भूख , अमीर के नींद के छोटी ..........सच हे समाजवाद का जनाजा ,,,

आपका आभार !

Comment by Shubhranshu Pandey on July 21, 2014 at 11:56pm

आदरणीय गणेश भैया, 

चैन की नींद का अन्तर बहुत सुन्दर ढंग से उभर कर सामने आया है,  

सादर.

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 21, 2014 at 10:16pm

चैन से सोना ....दोनों के अलग- अलग मायने कितनी खूब सूरती से समझाए  हैं आपने इस लघु कथा के माध्यम से वाह्ह्ह... 

लघुकथा अपना प्रभाव् छोड़ने में कामयाब है ,बेहतरीन सन्देश देती हुई लघु कथा हेतु आपको हार्दिक बधाई आ० गणेश बागी जी |

बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली .....

Comment by विनय कुमार on July 21, 2014 at 9:46pm

बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 21, 2014 at 9:40pm

आदरणीया कल्पना रमानी जी, लघुकथा पर आपका आशीर्वाद पाना मुग्धकारी है, आभार आपका।

Comment by Santlal Karun on July 21, 2014 at 9:40pm

आदरणीय गणेश जी बागी जी,

'चैन से सोने' के दो भिन्न परिदृश्य, भिन्न अभिप्राय, भिन्न अर्थशास्त्र, भिन्न संगति-विसंगति और विडम्बना को इस लघु कथा के माध्यम से रेखांकित किया गया है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

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