For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - - ' ज़िन्दगी क्यूँ है उधारी सी ' ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122        2

कुछ  परायी  कुछ  हमारी  सी

ज़िन्दगी  क्यूँ   है  उधारी  सी

 

अश्क़ों की  नदियाँ  थमीं तो  हैं

सिसकियाँ अब तक हैं जारी सी

 

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी

 

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी

 

आसमाँ रोया  बहुत  था  कल

आज  सूरत  है  निखारी  सी

 

हर तरफ़  घायल हुआ हूँ   मै

बात  शायद   थी  दुधारी  सी

 

बेक़रारी   दिल   में   तारी  है

इक ग़ज़ल हो जाये प्यारी  सी

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 759

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 15, 2014 at 10:21am

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी सलाह , आपके विचार , आपकी भावनायें सदा से मेरे लिये अनुकरणीय रही हैं और रहेंगीं ॥ आपकी प्रतिक्रिया सदा मेरा मार्ग दर्शन करते रही है ॥ ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से शुक्रिया ॥

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 15, 2014 at 10:18am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करते आयी है , सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 2:45am

आपकी ग़ज़ल पर अब वाह-वाह नहीं कहूँगा, आदरणीय गिरिराजभाईजी. अब शेर दर शेर हाँ-ना होगी. :-)))
क्योंकि किस शेर पर क्या कहा जाये, आदरणीय.. पूरी ग़ज़ल ही मुग्धकारी है !
अब ऐसे में अंतिम शेर अपनी उपस्थिति के लिहाज से सक्षम होने के बावज़ूद भर्ती का लगने लगे तो ग़ज़ल की ऊँचाई समझ में आती है.
शुभ-शुभ

Comment by vijay nikore on July 9, 2014 at 3:27pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल बनी है। बधाई, आदरणीय गिरिेराज जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:09am

आदरणीय गुमनाम भाई , हौसला अफज़ाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:08am

आदरणीय शिज्जु भाई , ग़ज़ल की तारीफ़ के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 9, 2014 at 7:16am

बेक़रारी   दिल   में   तारी  है

इक ग़ज़ल हो जाये प्यारी  सी

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी

 

वाह वाह  ...बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:50pm

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी 

वाह क्या कहने दिली दाद कुबूल करें इस ग़ज़ल के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2014 at 11:26am

आदरनीय अरुण निगम भाई , सरलता से बात कहना आपको अच्छा लगा जान कर बहुत खुशी हुई , उत्साह वर्धन और सराहना के लिये आपका दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:53am

आदरणीय गिरिराज जी, बहुत सहज और सरल शब्दों में बहुत ही गंभीर गज़ल कह गए भाई, बधाइयाँ...........

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी..................वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
5 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
8 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service