For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम और मैं कितनी सदियों से
हाँ, कितने जन्मों से,
कितने चेहरे और रूप लिये
कभी भूले से, कभी अंजाने से.

एक युग में कभी तृण बन के
अमृत जल से बरसे कहीं,
नभ में तारे बन के चमके कभी
कितनी कहानियाँ सुनी अनसुनी रहीं.

किसका सफ़र था जो हवा बन के
गुज़र रहा था पात पात
एक गुलाब खिला था वन में
कुछ महक थी बसी मकरंद में.

एक एहसास था मन के कोने में
वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,
कितने बसेरे मिले थे पहचाने से
पर तुम बिन था कहाँ ठहराव.

हमारे पथ दिखते थे समतल
पर हम चलते अलग-थलग थे,
उत्तर-दक्षिण के विपुल आकर्षण में
अदृश्य डोर से बंधे हुए थे.

कवियों की कही सबने मानी
एक सच्चाई थी थोड़ी सी,
समझा कौन, किसने समझाया
लम्बी कहानी बस इतनी सी.


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 8, 2014 at 9:23pm

नैसर्गिक सत्ता इकाइयों के अनुरूप चलती हुई भी सार्वभौमिक स्वरूप को जीती है. जड़-चेतन से रुपायित मानवीय व्यवहार संवेदना के स्तर पर कितना सर्वसमाही हुआ करता है !
आपकी कविता अपने बिम्बों के माध्यम से शाश्वत समृद्धियों को संजोती है. और प्रेम का कोमल स्वरूप दृढ़वत उत्साह के साथ साझा होता है.

समझा कौन, किसने समझाया
लम्बी कहानी बस इतनी सी.
वाह . क्या कहा है आपने !
आपकी प्रस्तुत कविता की दशा को हर जीनेवाला जीता है. और ऊर्जस्वी होता जाता है. आपकी अभिव्यक्ति का समर्थन सभी प्रेमियों को मिले.
   
हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 12:55pm

आदरणीया कुंती जी ..अध्य्त्मिकता का पु ट  लिए हुए इस शसक्त और गंभीर रचना के लिए आपको तहे दिल बधाई सादर 

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 7:46am

बहुत ही बढ़िया रचना !! आ0 कुंती दीदी बधाई स्वीकारिए । 

Comment by Meena Pathak on June 3, 2014 at 10:06pm

कवियों की कही सबने मानी
एक सच्चाई थी थोड़ी सी,
समझा कौन, किसने समझाया
लम्बी कहानी बस इतनी सी............................बहुत सुन्दर .. नमन आप को दी | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 2, 2014 at 4:37pm

बहुत खूबसूरत कमाल की रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Arun Sri on June 2, 2014 at 11:59am

कुछ कहानियां कभी खत्म नही होतीं ! अच्छा भी है कि जीवन हमेशा कहानियों सा सरल और प्रवाह मय बना रहे ! :-)))))))

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 1, 2014 at 11:59pm

एक एहसास था मन के कोने में
वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,
कितने बसेरे मिले थे पहचाने से
पर तुम बिन था कहाँ ठहराव..........................सुंदर,मन को छू जाते हुए भाव. हार्दिक बधाई आदरणीया कुंती जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2014 at 10:46pm

किसका सफ़र था जो हवा बन के
गुज़र रहा था पात पात 
एक गुलाब खिला था वन में
कुछ महक थी बसी मकरंद में.

एक एहसास था मन के कोने में
वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,
कितने बसेरे मिले थे पहचाने से
पर तुम बिन था कहाँ ठहराव.---वाह वाह बहुत सुन्दर प्रभाव शाली पंक्तिया ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई आपको आ० कुंती जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2014 at 12:38pm

तुम और मै के जन्म जन्मान्तर सम्बन्ध के प्रति निश्चित आश्वस्ति  और भरोसे को इस  कामना  के  साथ प्रणाम  कि यही सच हो iआदरणीया  i  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
18 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें"
21 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ इस्लाह भी ख़ूब हुई आ अमित जी की"
23 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ रिचा अच्छी ग़ज़ल हुई है इस्लाह के साथ अच्छा सुधार किया आपने"
25 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आपको ।"
34 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
50 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
51 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
52 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Richa यादव जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई। इस्लाह से बेहतर हो जाएगी ग़ज़ल। "
57 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ji, अच्छा प्रयास हुआ ग़ज़ल का। बधाई आपको। "
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Chetan Prakash ji, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। सुझावों से निखार जाएगी ग़ज़ल। बधाई। "
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, ख़ूब ग़ज़ल रही, बधाई आपको। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service