For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1326

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sarita Bhatia on May 31, 2014 at 10:50am

आप लाजवाब लिखती हैं संजू जी आपकी गजल मैं कभी miss नहीं करना चाहती 

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:49pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:47pm

"'ये और बात थी कि वो भी बेकरार लगी --यह तो कोई पुरुष लिख सकता है i आपके जेहन में यह ख्याल कैसे आया"'////

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी शायद आपने ध्यान नहीं दिया कि प्रस्तुत ग़ज़ल में रदीफ़ "'लगी "'है ,जिसे किसी भी सूरत में बदला नहीं जा सकता । इसी आधार पर रदीफ़ "'लगी " को लिंगानुसार  भी "'लगा "'नहीं किया जा सकता। यह तो हुई इस ग़ज़ल से संबन्धित बात ..जरूरी बात यह कि ग़ज़ल लिखने के लिए हमें किसी की भी तरह सोचना पड़ सकता है ..स्त्री, पुरुष, पशु ,पक्षी  वगैरह वगैरह...इसीलिए   मेरे  जेहन में ये खयाल आया । बहरहाल आपका बहुत बहुत शुक्रिया .

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:31pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:31pm

आदरणीय Sushil Sarna जी आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ ।

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:29pm

आदरनिया coontee जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:28pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:27pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय  narendrasinh chauhan जी

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:26pm

शिज्जू जी अभी तो बस कोशिस जारी है,फिलहाल आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।  

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:24pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service