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दीवार

आसमां  में कोई सरहद नहीं

फिर धरती को क्यों बाँटा है

ये तो हम और तुम हैं ,जिन्होंने

दिलों को भी दीवार से पाटा है

कहीं नफ़्रत की तो कहीं अहं की

आओ इस दीवार को गिरा कर देखें

कि दिल कितना बड़ा होता है..

****************

महेश्वरी कनेरी

मौलिक /अप्रकाशित

Views: 425

Comment

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Comment by Satyanarayan Singh on May 3, 2014 at 12:55pm

अति सुन्दर भाव समेटे सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया

Comment by coontee mukerji on April 30, 2014 at 1:17am

बहुत  सुंदर....आपको हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 29, 2014 at 5:20pm

सुन्दर भाव , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई , आदरणीया !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 29, 2014 at 2:25pm

एक सार्थक अभिव्यक्ति, बहुत ही सुंदर आदरणीया बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 1:05pm

कम शब्दों में बहुत कुछ कहकर, एक सार्थक सन्देश देती रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया माहेश्वरी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2014 at 12:37pm

बहुत खूब आदरणीया महेश्वरी जी अच्छी रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by vijay nikore on April 28, 2014 at 11:22am

//

आसमां  में कोई सरहद नहीं

फिर धरती को क्यों बाँटा है//...........  यह बहुत ही खूबसूरत खयाल है।

 

थोड़े से शब्दों में आपने कितना-कुछ कह लिया, और मार्ग-दर्शन भी किया। हार्दिक बधाई।

 

एक छोटी-सी बात ... नफ़रत और अहं.. इन दो दीवारों को सम्बोधित किया है तो शायद

"आओ इन दीवारों को गिरा कर देंखें" कहना अच्छा लगेगा। पर आप लेखक  हैं, आपका

कोई विशिष्ट कारण हो सकता है इस पंक्ति को एक वचन में रखने का। आशा है मेरे सुझाव

को अनयथा न लेंगे।

 

पुन: बधाई इस अच्छी रचना के लिए।

Comment by savitamishra on April 26, 2014 at 11:59pm

badhiya ...

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