For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Maheshwari Kaneri's Blog (23)

होली

फागुन आया अंगना मेरे ,रंगो की हम जोली है ,

नभ में उड़ते रंग गुलाल,आज सखी री होली है |

 

गाते गीत चौक चौबारे ,मस्तों की ये टोली है,

बाजे ढोल मृदंग मजीरा ,आज सखी री होली है |

 

धानी धानी चुनरी  ओढे,पात बजाते ताली है

एक रंग में रंगे सभी है, आज सखी री होली है |

 

बिन ठिठोली होली कैसी ,बात सभी ने बोली है ,

भंग का रंग चढा सभी को , आज सखी री होली है |

 

धरती पर रंगो की नदियाँ ,अम्बर पर रंगोली है ,

आँगन आँगन…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on March 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments

माँ भारती पुकारती

भारत के नौजवानों ,माँ भारती पुकारती ,

देश के सपूत तुम ,फर्ज तो निभाइए |

मुश्किल घड़ी है आज,दाव पे लगी है लाज,

सिंग सा दहाड़ कर देश को जगाइए |

वीरता रगों में भर ,शौर्य की कहानी गढ़ ,

प्रचंड चंड रूप तो शत्रु को दिखाइए |

पावन मन गंगा हो ,ले हाथ में तिरंगा हो ,

वन्दे मातरम् गीत ,गाते सब जाइए |

        ***********

मौलिक और अप्रकाशित रचना 

महेश्वरी कनेरी 

 

Added by Maheshwari Kaneri on March 11, 2019 at 5:30pm — 5 Comments

कुछ अनमोल रिश्ते   ( कहानी )

बचपन में  हमने  अपने दादा दादी और नाना नानी को तो नहीं देखा था ,पर हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग महिला जो अपने परिवार के साथ रहा करती थी । उन्ही से हमें बहुत प्यार मिला करता  उनका अकसर  हमारे घर में बिना नागा  जाना जाना  हुआ करता था ।हम उन्हें आमा यानी नानी कहा करते थे ।

वे जब भी हमारे घर आती थी,माँ उन्हें बड़े प्यार से बिठा कर चाय नाश्ता दिया करती थी । वे चाय नाश्ते के चुस्कियो के साथ-साथ अपनी हर छोटी-छोटी बातें ,हर दर्द हर दुख सुख माँ के साथ बाँटा करती थी। माँ भी उनकी हर बात बहुत…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on February 6, 2019 at 4:00pm — 4 Comments

मातृ भूमि के लिए ..

मनहरण धनाक्षरी  ..

तन मन प्राण वारूँ वंदन नमन करूँ 

गाऊँ यशोगान सदा   मातृ भूमि के लिए ..

पावन मातृ भूमि ये, वीरों और शहीदों  की 

जन्मे राम कृष्ण यहाँ हाथ सुचक्र लिए ,

ये बेमिसाल देश है संस्कृति भी विशेष है

पूजते पत्थर यहाँ  आस्था अनंत लिए 

शौर्य और त्याग की  भक्ति और भाव की

कर्म पथ चले सभी हाथ में ध्वजा  लिए .....

.

अप्रकाशित /मौलिक 

महेश्वरी कनेरी 

Added by Maheshwari Kaneri on January 16, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

आग नई फिर बुन लो ना ( गीत)

क्यों बुझे बुझे से बैठे हो ,

आग नई फिर बुन लो ना |

भटक गए गर राह कहीं तुम ,

राह नई फिर चुन लो ना |

बुझे बुझे से ...........

दुःख सुख तो हैं आते जाते  ,

बात सभी हैं ये ही कहते …

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on May 9, 2018 at 1:30pm — 6 Comments

दो नन्हें फूल

दो नन्हें फूल,मेरे आँगन के

खिलते महकते,खुशियाँ जीवन के

लड़ते झगड़ते, कभी रुठ भी जाते

पल भर में फिर भूल भी जाते

भोली हँसी कोमल इनका मन है

इनकी बातो में झरते सुमन हैं

दुख का साया, इनके पास न आए

निर्मल धारा ये, बस बहते ही जाए

‘काशवी’ जीवन है तो,’दैविक’ वर है

इनसे ही तो बना ,मेरा घर , घर है

          ***********

काशवी’-प्रकाशवान

दैविक- ईश्वर का दिया वरदान

       …

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on January 5, 2015 at 8:30pm — 7 Comments

माँ के माथे की बिन्दी

माँ के माथे की बिन्दी

गोल बड़ी सी बिन्दी

माथे पर कान्ति बन

खिलती है बिन्दी

माँ के माथे की बिन्दी

सजाती सवाँरती

पहचान बनाती बिन्दी

मान सम्मान

आस्था है बिन्दी

शीतल सहज सरल

कुछ कहती सी बिन्दी

माँ के माथे की बिन्दी

थकान मिटा,उर्जा बन

 मुस्काती बिन्दी

पावन पवित्र सतित्व की

 साक्षी है बिन्दी

परंपरा संस्कारों का

आधार है बिन्दी

माँ के माथे की बिन्दी

अपनी हिन्दी भी…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on September 12, 2014 at 6:30pm — 5 Comments

अटूट बंधन

अटूट बंधन

कल रात भर आसमान रोता रहा

धरती के कंधे पर सिर रख कर

 इतना फूट फूट कर रोया कि

 धरती का तन मन

सब भीगने गया

पेड़ पौधे और पत्ते भी

इसके साक्षी बने

उसके दर्द का एक एक कतरा

कभी पेडो़ं से कभी पत्तों में से

टप-टप धरती पर गिरता रहा

धरती भी जतन से उन्हें

समेटती रही,सहेजती रही

और..

दर्द बाँट्ने की कोशिश करती रही

ताकि उसे कुछ राहत मिल जाए

**********************

महेश्वरी…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on July 16, 2014 at 6:34pm — 8 Comments

खिलखिलाती रही

कतरा कतरा बन

जि़न्दगी गिरती रही

हर लम्हों को मैं

यादों में सहेजती रही

अनमना मन मुझसे

क्या मांगे,पता नहीं

पर हर घड़ी धूप सी

मैं ढलती रही

रात, उदासी की चादर

 ओढा़ने को तत्पर बहुत

पर मैं

चाँद में अपनी

खुशियाँ तलाशती रही

और चाँदनी सी

 खिलखिलाती रही

****************

महेश्वरी कनेरी

अप्रकाशित /मौलिक

Added by Maheshwari Kaneri on June 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments

एक अच्छी शुरुवात है

कुछ नई सी बात है

आज सुरमई  प्रभात है

उम्मीद नहीं विश्वास है

एक अच्छी शुरुवात है

एक पग आगे बढ़ा

कोटि पग भी बढ़ चले

हाथों से हाथ मिले

दिलों के तार जुड़ते चले

ये भी जज्बात है

एक अच्छी शुरुवात है……….

जैसे छिप गया हो तम

अँधेरे की बौछार से

नवल कोंपलें खिल उठीं

बसंत की पुकार से

 प्रकॄति की सौगात है

एक अच्छी शुरुवात है………….

हौसलों की उड़ान भर

उद्धमी मन थकता नहीं

असंभव को संभव…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on June 1, 2014 at 7:49pm — 12 Comments

इंसान का कद

इंसान का कद

इंसान का कद इतना ऊँचा होगया

कि इंसानियत उसमें अब दिखती नहीं

दिल इतना छोटा होगया कि

भावनाएं उसमें टिक पाती नहीं

जिन्दगी कागज़ के फूलों सी

सजी संवरी दिखती तो है

पर प्रेम प्यार और संवेदनाओ

की कहीं खुशबू नहीं

चकाचौंध भरी दुनिया की इस भीड़ में

 इतना आगे निकल गया कि

अपनों के आँसू उसे अब दिखते नहीं

आसमां को छूने की जिद्द में

पैर ज़मी पर टिकते नहीं

सिवा अपने सब छोटे-छोटे

कीड़े मकोड़े से…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on May 14, 2014 at 5:40pm — 10 Comments

गौरैया

गौरैया

माँ ! आँगन में अपने

अब क्यों नहीं आती गौरैया

शाम सवेरे चीं चीं करती

अब क्यों नहीं गाती गौरैया

फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती

पास जाओ तो उड़ जाती

कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर

अब क्यों नहीं दिखती गौरैया

माँ बतला दो मुझ को

कहाँ खोगई  गौरैया ?

विकास के इस दौर में,बेटा !

मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा

काटे पेड़ और जंगल सारे

 और छीना पंछी का रैन बसेरा

रुठ गई हम से अब हरियाली

पत्थर का…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on May 3, 2014 at 7:39pm — 10 Comments

दीवार

दीवार

आसमां  में कोई सरहद नहीं

फिर धरती को क्यों बाँटा है

ये तो हम और तुम हैं ,जिन्होंने

दिलों को भी दीवार से पाटा है

कहीं नफ़्रत की तो कहीं अहं की

आओ इस दीवार को गिरा कर देखें

कि दिल कितना बड़ा होता है..

****************

महेश्वरी कनेरी

मौलिक /अप्रकाशित

Added by Maheshwari Kaneri on April 26, 2014 at 4:45pm — 8 Comments

चुनाव

         चुनाव

भरे नहीं थे पिछले घाव

लो फिर आगया चुनाव

मुद्दों की मलहम लेकर

घर-घर बाँट रहे हैं

फिर नए साजिश की

क्या ये सोच रहे हैं ?

धर्म मज़हब की लेकर आड़

करते नित नए खिलवाड़

फिर शह-मात की बारी है

सियासी जंग की तैयारी है

आरोप प्रत्यारोप का

भयंकर गोला बारी है

विकास की उम्मीद लिए

परिवर्तन पर परिवर्तन

लेकिन थमता नहीं यहाँ

कुशासन का ये नर्तन

कहीं मुँह बड़ा हुआ…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on April 17, 2014 at 6:30pm — 8 Comments

कह मुकरियाँ

कह मुकरियाँ

(ये मेरा पहला प्रयास है )

प्रेम बूँद वो भर भर लाते

तपित हिये की प्यास बुझाते

मन मयूर मेरा उस पर पागल

क्या सखि साजन्, ना सखि बादल

 

कभी पेड़ों के पीछे से झाँके

कभी खिड़की से झाँक मुस्काए

हँस हँस के डाले है वो फंदा

क्या सखि साजन्, ना सखि चंदा

 

उम्मीदों की किरण जगाता

स्फूर्ति नई वो भर भर लाता

शुरु होता जीवन उससे मेरा

क्या सखि साजन्, ना सखि…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on March 29, 2014 at 1:00pm — 4 Comments

गीत

गीत 

.

मन के पन्नों में ,मै.

 गीत लिख रही हूँ

जो शब्द तुमनें दिए

वही बुन रही हूँ…..

दिल की धड़कन में

यादें सुबक रही हैं

जो दर्द तुमनें दिए

वही लौटा रही हूँ

मन के पन्नों में ,मै

 गीत लिख रही हूँ…..

मौसमों की तरह

तुम बदल गए हो

और कितना सहूँ

मै भी बदल रही हूँ

मन के पन्नों में ,मै.

 गीत लिख रही हूँ……

दो कदम ही चले थे

फिर खोगए तुम

राह सूनी सही

मैं अभी…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on March 4, 2014 at 2:30pm — 4 Comments

गज़ल (धूप पर बादलो का पहरा लगा हुआ है)

धूप पर बादलो का पहरा लगा हुआ है

उदासी का सबब और भी गहरा हुआ है

 

तूफ़ा से कह दो थोडा संभल कर चले

वक्त आज यहाँ कुछ बदला हुआ है

 

दुनिया का कैसा ये बाजार सजा है

जहाँ देखो हर रिश्ता बिका हुआ है

 

रात भर लिखती रही दर्द की दास्ता

रात का साया और भी गहरा हुआ है

 

देश की हालात मत पूछो तो अच्छा है

यहाँ हर इंसान इंसान से डरा हुआ है

 

देख कर खुशनुमा ये मंज़र हैरान हूँ मैं

एक फूल से सारा चमन…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on January 28, 2014 at 11:30am — 12 Comments

मौन जब मुखरित हो जाता है (महेश्वरी कनेरी)

मौन जब मुखरित हो जाता है

मौन जब मुखरित हो

शब्दों में ढल जाता है

मिट जाते भ्रम सभी

मन दर्पण हो जाता है

मौन जब मुखरित हो जाता है…..

बोझिल मन शान्त हो

सागर सा लहराता है

वेदना सब हवा हो जाती

भोर दस्तक दे जाता है ।

मौन जब मुखरित हो जाता है…..

धैर्य मन का सघन हो

विश्वास सबल हो जाता है

पतझड़ मन बसंत बन

कोकिल सा किलकाता है ।

मौन जब मुखरित हो जाता…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on January 21, 2014 at 7:00pm — 8 Comments

खोटा सिक्का

खोटा सिक्का

चले थे खुद को भुनवाने

दुनिया के इस बाजार में.

पर खोटा सिक्का मान

ठुकरा दिया ज़माने ने

सोचा ! मुझमें ही कमी थी

या, फिर वक्त का साथ न था

समझ न पाये ,और चुप रह गए

पर चैन न आया

और चल पडे दुनिया को

जानने और पहचानने

देखा ! तो जाना ,

दुनिया कितनी अजीब है

झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी

के पलड़े में हर रोज

इंसान तुल रहा 

पलड़ा जितना भारी

इंसान उतना ही…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on January 17, 2014 at 1:00pm — 9 Comments

अकेलापन

अकेलापन

खिड़की से झांकता

एक उदास चेहरा

और, दूर खड़ा

पत्ता विहीन ,

ढ़ूँढ़ सा, एक पेड़

दोनों ही

अपने अकेलेपन

का दर्द बाँटते

और

घंटों बतियाते

***********

महेश्वरी कनेरी......पूर्णत: मौलिक/अप्रकाशित

Added by Maheshwari Kaneri on January 11, 2014 at 12:30pm — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
48 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी आदरणीय यही कि जिस मुक़द्दमे का इतना चर्चा था उसमें हारने वाले को सज़ा क्या हुई उसका भी चर्चा…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। सुझावों के बाद यह और बेहतर हो गयी है। हार्दिक बधाई…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"वक़्त बदला 2122 बिका ईमाँ 12 22 × यहाँ 12 चाहिए  चेतन 22"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service