For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आग नई फिर बुन लो ना ( गीत)

क्यों बुझे बुझे से बैठे हो ,

आग नई फिर बुन लो ना |

भटक गए गर राह कहीं तुम ,

राह नई फिर चुन लो ना |

बुझे बुझे से ...........

दुःख सुख तो हैं आते जाते  ,

बात सभी हैं ये ही कहते  |

भूल के बातें कल की सारी,

आज नई फिर चुन लो ना

बुझे बुझे से ...........

रातें  कितनी भी हो घनेरी ,

सुबह उतनी ही होती सुनेरी  |

टूट गए गर ख़्वाब सलोने ,

ख़्वाब नया  फिर बुन लो ना

बुझे बुझे से ...........

मन से हारे हार है जानो 

मन से जीते जीत है मानो  |

जीत  सको तो मन को जीतो ,

बात यही तुम गुनलो ना |

बुझे बुझे से ...........

 ************

मौलिक  और अप्रकाशित 

महेश्वरी कनेरी......

Views: 577

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on May 10, 2018 at 2:08pm

आदरणीया माहेश्वरी कनेरी जी, नमस्कार । बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Maheshwari Kaneri on May 10, 2018 at 11:21am
आप सभी का आभार ...
Comment by Maheshwari Kaneri on May 10, 2018 at 11:21am
नस्कार समीर कबीर जी
..,सुझाव हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ,मै अभी इसका पालन करती हूँ ..उम्मीद करुँगी कि आगे भी मेरी .गलतियों को नजर अंदाज न कर मुझे नेक सलाह सुझाव देकर .मुझे कृतार्थ करंगे
पुन: आभार आप का ....
Comment by Mohammed Arif on May 10, 2018 at 8:14am

आदरणीया माहेश्वरी कनेरी जी आदाब,

                             बहुत ही सुंदर गीत लिखा है आपने । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब के सुझावों और सुधारों पर तत्काल प्रभाव से संज्ञान लें , फिर देखिए गीत में कैसे निखार आ जाएगा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 6:03pm

मोहतरमा माहेश्वरी कनेरी जी आदाब,बहुत सुंदर गीत रचा आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'दुःख सुख तो है आनी जानी'

इस पंक्ति में "दुःख सुख" पुल्लिंग है, इसलिये 'आनी जानी' के बजाय "आते जाते" होना चाहिए न?

'ख़्वाब नई फिर बुन लो ना'

इस पंक्ति में भी "ख़्वाब" शब्द पुल्लिंग है, इसलिये 'नई' को "नये" होना चाहिये ।

'मन से हारे हुए है प्यारे

मन से जीते जीत सखा रे

जित सको तो मन को जीतो'

इस बन्द में ऊपर की दो पंक्तियों में सम्बोधन एक वचन है, और अंतिम पंक्ति में बहुवचन? देखियेगा ।

'बात यही तुम गु लो ना'

इस पंक्ति में 'गु' को आप "गुन" लिखना चाहती थीं?

कुछ पंक्तियों में अनुस्वार लगना थे जो नहीं लगे,इन टंकण त्रुटियों पर भी ध्यान दें ।

Comment by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 4:29pm

सुंदर गीत।।बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service