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अगर हो जिंदगी देनी - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222

**  **
हॅसी  में  राज पाया  है, कि कैसे  उन  को मुस्काना
उदासी  से  तेरी   सीखे, कसम  से  फूल  मुरझाना

**
भले ही  खूब  महफिल  में, हया का  रंग  दिखला तू
गुजारिश तुझ से पर दिल की, अकेले में न शरमाना

**
करो नफरत से  नफरत तुम, इसी से  दूरियाँ बढ़ती
मुहब्बत  पास  लाती है, भला  क्या  इससे घबराना

**
हमें   है   बंदिशों   जैसे,  कसम  से  रतजगे  उसके
इसी से हो  गया मुश्किल, सपन में  यार अब जाना

**
अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना

**
बहुत अच्छी समझ उसको, धरम की मूल बातों की 

सियासत धर्म की बातें, ‘मुसाफिर’ को न समझाना

*मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment

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Comment by Satyanarayan Singh on April 26, 2014 at 9:46pm

हर शेर लाजबाब है आदरणीय दिली दाद कबूल करें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 2:14pm

भले ही खूब महफिल में, हया का रंग दिखला तू
गुजारिश तुझ से पर दिल की, अकेले में न शरमाना.......दिलकश
हमें है बंदिशों जैसे, कसम से रतजगे उसके
इसी से हो गया मुश्किल, सपन में यार अब जाना...............बेहतरीन
अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा खुद को कहोगी तो, मिटेगा कोई परवाना.................क्या बात है
आदरणीय लक्ष्मण जी हर शेर उम्दा है ..लेकिन इन शेरोन का तो कोई जवाब ही नहीं ..आनद आ गया ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर
**


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 24, 2014 at 12:05pm

हमें   है   बंदिशों   जैसे,  कसम  से  रतजगे  उसके
इसी से हो  गया मुश्किल, सपन में  यार अब जाना----सबसे ज्यादा पसंद आया ये अशआर ,दाद कबूलिये इस सुन्दर ग़ज़ल पर. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2014 at 9:01pm

हमें   है   बंदिशों   जैसे,  कसम  से  रतजगे  उसके
इसी से हो  गया मुश्किल, सपन में  यार अब जाना

**
अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना --------- आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही , दोनो अशआर बहुत खूब सूरत लगे , बधाइयाँ ॥

Comment by umesh katara on April 23, 2014 at 8:04pm

बढिया सर बधाई

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 23, 2014 at 11:20am

आदरणीय लक्ष्मण जी
बहुत बढ़िया.. मुबारक हो

बहुत अच्छी समझ उसको, धरम की मूल बातों की

सियासत धर्म की बातें, ‘मुसाफिर’ को न समझाना

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2014 at 9:38am

अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना...........वाह! जिंदाबाद शेर

दिली बधाई स्वीकार करें आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 8:14am

वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई है बहुत सुन्दर रवानी

अगर हो जिंदगी देनी, गुलों में खुद को शामिल कर
शमा  खुद  को  कहोगी  तो, मिटेगा  कोई  परवाना.......... के लिए विशेष दाद

सादर

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