For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गरल रख पास शिव जैसा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222

हमारे   दुख  दिखाई  कब  दिए  हैं  देवताओं को
हमेशा  आँकते वो   कम  हमारी  आपदाओं  को

*
मरें  या  जी रहे  हों हम  उन्हें  पूजा  करें  हरदम
न जब भी पूज पाए हम निकल आए सजाओं को

*
नहीं फिर भी हुए खुश वो भले ही सब किया अर्पण
गरल रख पास शिव जैसा सदा सौपा सुधाओं को

*
पुकारा  जब  गया  उनको  दुखों से  हो  परेशा ढब
किया है  अनसुना बरबस  हमारी सब सदाओं को

*
लगा करता जरूरी नित न जाने क्यों उन्हे अब भी
हमारे  संकटों  से   बढ़   नचाना  अप्सराओं   को

*
कभी जब हम जुटा लाए  दिया  कोई करम करके
बुझाने  भेजते  उस को  यहाँ  सौ-सौ  हवाओं  को

*
चलो अब तो बगावत कर तजें हम पूजना उनको
रहेंगे कब तलक  बोलो  तरसते  हम दुआओं को

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:41am

आदरणीय भाई सौरभ जी , ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

आपकी टिपण्णी निरंतर उत्साहवर्धन करती है . हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 27, 2014 at 10:24am

आदरणीय भाई वीनस जी , आप से ग़ज़ल के किये दाद मिली , लेखन सार्थक हुआ . यदा- कदा मार्गदर्शन भी करते रहिएगा . हार्दिक धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 6:32pm

वाह क्या कहन है !  बधाई !!

बात तो सही है.. आकाओं ने साइ-फ़ाइ अप्सराओं को नचाना ही सदा उचित माना है.

:-)))

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:49am

वाह भाई जी विद्रोही ग़ज़ल हुई है ... :) :) :)

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2014 at 9:52am

आदरणीय भाई सतयनारायण जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2014 at 9:51am

आदरणीय भाई शिज्जू जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2014 at 9:49am

आदरणीय भाई मनोज कुमार जी , सर्वप्रथम आप को इस बात के लिए अत्यधिक हार्दिक धन्यवाद कि आपने मेरी ग़ज़ल को ९० % अंक प्रदान किये , इसका मतलब यह है कि मेरे लेखन में निरंतर सुधर हो प् रहा है .यह सब आप जैसे समस्त साथियों कि टिप्पणियों और मार्गदर्शन का परिणाम है .आशा है आगे भी इसी तरह कमियों से अवगत करते रहिये . मैंने देवताओं को प्रतीकात्मक रूप में लिया है .ये मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही हैं , वैसे मेरा अपना जो अनुभव है वह यह है कि मनुष्य देवताओं से प्रेम कम और भयभीत अधिक रहता है देवता भी सहानुभूति कम और भय अधिक पैदा करते हैं .जहाँ तक सुधाओं का प्रयोग करने कि बात है आप सही कह रहे हैं . पर इसके प्रयोग की यहाँ पर विवसता है इसे आप कहन का दोष मन सकते हैं . और इसका प्रयोग बुजुर्ग भाषाविद से परामर्श के बाद ही किया गया है .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2014 at 9:36am

आदरणीय भाई गिरिराज जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2014 at 9:35am

आदरणीय श्याम नारायण जी , ग़ज़ल कि प्रसंशा के लिए आभार .

Comment by Satyanarayan Singh on March 8, 2014 at 2:56pm
खूबसूरत ग़ज़ल हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
14 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service