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ग़ज़ल- सारथी || कली बेजार है ||

कली बेजार है, अपनी नजाकत से

बला की खूबसूरत हैं, क़यामत से/१

अकेला हुस्न जो देखा सरे-महफ़िल

तो हम पहलू में जा बैठे शरारत से /२

ज़मीं पर चाँद उतरा है ख़ुशी है ; पर

सितारे ग़मज़दा हैं इस बगावत से /३

बदन सोने सरीखा है , अगर मानो 

जरा सा तिल लगा दूँ मैं, इजाजत से /४

बड़े खामोश रहते हो, वजह क्या है

समंदर दिल में रक्खा है हिफाजत से/५

सुना जो बागबां से आप का किस्सा

गुलिस्तां छोड़ आये हैं शराफ़त से /६

मेरी माँ फिक्रमंदी में, दुआगो है

के रख अल्लाह बेटे को मुहब्बत से /७

.................................................

वज्न: १२२२ १२२२ १२२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on November 29, 2013 at 10:48am

 आदरणीया annapurna bajpai जी और श्री  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , तहे-दिल से शुक्रिया आपका ! स्नेह देते रहिएगा ..आपका प्यार , आपका मार्गदर्शन नितांत आवश्यक है मेरे लिए ! सादर नमन सहित :)

Comment by Saarthi Baidyanath on November 29, 2013 at 10:42am

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी , बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! महती कृपा आपकी जो इन मूल बिन्दुओं की तरफ ध्यान दिलाते हैं ! ऋणी रहूँगा ! कुछ गिने चुने सज्जनों का हमेशा ही इस मंच से विशेष आशीष मिलता है ..जो ग़ज़ल परिष्करण में , मेरे ज्ञान वृद्धि में सहायक होता है ! आपके सुझाव के पश्चात् निश्चित ही ग़ज़ल कहने लायक हो जाएगी ! मान्यवर, कोटिशः सहृदय आभार ! :)


Comment by Saarthi Baidyanath on November 29, 2013 at 10:34am

आदरणीय  Shyam Narain Verma जी , शुक्रगुजार हूँ आपकी इनायतों का ..! मेहरबानी आपकी ! सादर नमन सहित :)

Comment by vandana on November 29, 2013 at 7:43am

बड़े खामोश रहते हो वजह क्या है

समंदर दिल में रक्खा है हिफाजत से/५

सुना जो बागबां से आप का किस्सा

गुलिस्तां छोड़ आये हैं शराफ़त से 

बहुत बढ़िया आदरणीय ...बहुत बहुत बधाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 29, 2013 at 6:53am

बहुत बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आप ने ...

बड़े खामोश रहते हो वजह क्या है

समंदर दिल में रक्खा है हिफाजत से.... क्या कहनें बाई इस शेर के ....
.
बदन "सोना" की जगह "सोने" होता तो व्याकरण सम्मत होता .... आदरणीय गिरिराज जी की सलाह भी गौर तलब है ...
मक्ते में "सलामत से" ठीक नहीं है .... सलामत पर ही मिसरा पूर्ण हो रहा है .. आप शब्दों के जादूगर है ..ये छोटी मोटी फाइन ट्यूनिंग,आसानी से कर सकतें है .... बहुत बहुत बधाई    

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 28, 2013 at 8:34pm

सारथी जी

क्या  खूब अशआर है

आपको माँ की दुआए मयस्सर हो

मगर गिरिराज जी की बात पर भी ध्यान दे i

शत-शत शुभ कामनाये  i

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 7:37pm

सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई आ0 सारथी जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 5:17pm

आदरणीय वैद्यनाथ भाई , !!! ग़ज़ल खूब सूरत कही है , आपको बहुत बहुत बधाई !!!!!

दो शेरों मे शब्दों मे गलती लग रही है ---कली बेजार है, उनकी नजाकत से ---- यहाँ , उनकी बहुवचन लग रहा है , जबकी कली एक वचन मे है --- अपनी शब्द के विषय मे सोच कर देखियेगा , शायद सही लगे आपको

2 --जरा सा तील लगा दूँ मैं, इजाजत से  --- तील को तिल कर लीजियेगा - मिसरा बे बह्र हो रहा है !!!!

Comment by Shyam Narain Verma on November 28, 2013 at 1:00pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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