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ग़ज़ल- सारथी || तमन्ना जाग उठती है ||

तमन्ना जाग उठती है , तेरे कूचे में आने से

तेरे चिलमन हटाने से जरा सा मुस्कुराने से/१ 

अजब ही दौर था जालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी

मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से/२ 

कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब

हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३ 

पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल

कि बाहों उठाले तू किसी तरह बहाने से/४ 

हमारे नाम से साकी सभी को मय पिला देना

सितारे रतजगा के हैं थके हारे जमाने से/५ 

परेशां हो पशेमां हो यही पूछे जवाबी ख़त

लिखावट क्यूँ नहीं जाती तेरे ख़त को जलाने से/६ 

लुटा शुहरत गवां दौलत मजे में सारथी देखो

अमीरी है फ़कीरों सी घटेगा क्या लुटाने से/७ 

..........................................................

वज्न: १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on November 17, 2013 at 8:06pm

आदरणीय  ram shiromani pathak जी , जनाब  वीनस केसरी साहब, जनाब  अरुन शर्मा 'अनन्त'  साहब और मान्यवर  Saurabh Pandey जी ...आप सब का ह्रदय से आभारी हूँ इस बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ! बहुत बहुत धन्यवाद ! स्नेह बनाये रखियेगा ...सादर !

जनाब केसरी साहब और मान्यवर सौरभ जी , आपकी बातें सर आँखों पर ! 
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 17, 2013 at 1:45pm

ग़ज़ल अच्छी हुई है ..

वैसे वाक्यों में बिना विशेष संयोजक की दरकार के किसी वाक्य का प्रारम्भ कि से होना उचित नहीं लगता, अलबत्ता भरती का भी नहीं, बल्कि ज़बरदस्ती का लगता है. यों कई ग़ज़लकार ऐसा करते हैं लेकिन ऐसा कोई अनुकरण किस काम का ?  इस मंच पर कई बार इससे बचने की सलाह दी जा चुकी है.

शुभेच्छाएँ

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 1:05pm

आदरणीय सारथी भाई जी बहुत ही सुन्दर खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये खासकर इन दो अशआरों हेतु विशेषतौर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

अजब ही दौर था ज़ालिम, ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी

तेरी पलकें उठाने से, तेरी पलकें झुकाने से/२ .. लाजवाब लाजवाब

लुटा शुहरत ,गवां दौलत, मजे में 'सारथी' देखो

अमीरी है फकीरों सी, घटेगा क्या लुटाने से/७ .. वाह भाई वाह

Comment by वीनस केसरी on November 17, 2013 at 3:26am

अच्छी ग़ज़ल कही है सारथी भाई
ढेरो मुबारकबाद

चौथे शेर को फिर से देख लीजिए
शाकी को साकी कर लीजिए

Comment by ram shiromani pathak on November 17, 2013 at 12:48am

वाह आदरणीय ज़ोरदार प्रस्तुति    /// हार्दिक बधाई  आपको///सादर  

Comment by Saarthi Baidyanath on November 16, 2013 at 8:28pm

आदरणीय  विजय मिश्र  जी और श्रीमान Dr Ashutosh Mishra जी ....बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर नमन सहित :)

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 5:41pm
बेहतरीन शायरी , बधाई हो .
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 16, 2013 at 3:37pm

कहीं जाओ मगर अच्छे मकां, मिलते कहाँ हैं अब

हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३ ...क्या बात है .पूरी ग़ज़ल ही मन को भा गयी ..कमाल के शेर..आपको हार्दिक बधाई 

Comment by Saarthi Baidyanath on November 15, 2013 at 10:14pm

डॉक्टर  अनुराग सैनी साहब ....आपका स्नेह बहुमूल्य है हमारे लिए ! साथ बने रहिएगा ..बहुत बहुत शुक्रिया इस हौसला-अफजाई के लिए ...:)

Comment by Saarthi Baidyanath on November 15, 2013 at 10:13pm

मान्यवर  गिरिराज भंडारी जी ...बहुत मेहरबानी आपकी ! नाचीज , खुद को सम्मानित महसूस कर रहा है इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ...कोटिशः आभार सहित :)

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