For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सवाल --गजल --उमेश कटारा

2122 2121 222

आप तो सचमुच कमाल करते हो
बेवफा होकर सवाल करते हो

जंग में तो हार जीत जायज है 
हारने का क्यों मलाल करते हो

क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से ही बवाल करते हो

.

पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो

.

आदमी तो मर गया कभी से था

आत्मा को भी हलाल करते हो

उमेश कटारा

मौलिक एंव अप्रकाशित रचना

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on November 11, 2013 at 5:40pm
"जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का क्यों मलाल करते हो |" उमेशजी ,यहाँ आपने बहुत प्यारे लहजे में जमीनी बात काएदे से रखी भाई , बधाई .
Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 9:38pm

बहुत ख़ूब .. बधाई ... गुरुजनों ने उचित मार्गदर्शन किया ही है ...

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:17pm

आदरणीय उमेश जी,सुन्दर प्रस्तुति...........हार्दिक बधाई

Comment by मोहन बेगोवाल on November 10, 2013 at 7:38pm

आदरणीय उमेश जी, उम्दा गजल के लिए बधाई हो 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 8:44am

आदरणीय उमेश जी, आपको शायद पहली बार सुनने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ. वाह !!!!!!!!!!!!

सादगी में भी कमाल करते हो

धूल को भाई गुलाल करते हो.............

बधाइयाँ..................... 

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 8:51pm

इस सफलतम प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आ0 उमेश जी.....

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:27pm

आदरणीय ग़ज़ल पर बहुत ही अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया राजेश माँ जी के कहे पर ध्यान दें शेर नंबर ०४ में तकाबुले रदीफ़ का दोष है. इस प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2013 at 10:19pm

आप तो सचमुच कमाल करते हो-----बहुत सुन्दर मतला 
बेवफा होकर सवाल करते हो

जंग में तो हार जीत जायज है 
हारने का कितना मलाल करते हो----हारने का क्यों मलाल करते हो ---करेंगे तो बहर सही हो जायेगी 

क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से उसका बवाल करते हो----मुद्दतो से ही बवाल करते हो ---करके देखिये ---उसका को आपने सिर्फ २ मात्रा में बाँधा है 

.

पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो

.

आदमी तो मर गया कभी से था

आत्मा को भी अब हलाल करते हो----आत्मा को भी हलाल करते हो ----अब हटा दीजिये फ़ालतू है 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल बन रही है दाद कबूलें बस उपर्युक्त सुधार कर लें. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
6 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service