For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल/समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया

मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन फअल

समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।

जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।

कभी पहले से कोर्इ तय नहीं होती जगह ,
जहाँ चाहा वहीं संतो का डेरा हो गया।

कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,
मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।


फंसा कर जाल में मानेगा ही अब तो उसे ,
सुनहरी मछली पे मोहित मछेरा हो गया।

यहाँ पर घुटरहा है दम सभी का क्या करें ,
बड़ा ही तंग महगार्इ का घेरा हो गया।

.

मौलिक अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 10, 2013 at 2:54pm

इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय राम अवध जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 10, 2013 at 12:15pm

आदरणीय राम अवध जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई 

Comment by annapurna bajpai on November 9, 2013 at 2:28pm

आ0 राम अवध जी सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । 

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 12:46pm

बेहद खूबसूरत गज़ल कही है आ0 राम अवध जी.... बधाई हो.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2013 at 10:08pm

बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने हर शेर पसंद आया ,दिली दाद कबूलें .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 8, 2013 at 8:21pm

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी 

जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।

कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,
मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।

यह दो शेर ख़ास पसंद आये. 

हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 8, 2013 at 9:08am

आदरणीय राम अवध भाई , बेमिसाल गज़ल के लिये और उम्दा शेरों के लिये आपको ढेरों बधाईयाँ !!!!

समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया। ---------------------वाह वा !! लाजवाब मतला !!!!

Comment by ajay sharma on November 7, 2013 at 10:30pm

zinda tasveer ban gayi  hai khoobsoorat ashaaro se ..... 

tashveer ki khoobsoorati me chhar chand lagaye hai ..... 

समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।

जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 3:25pm

You First gave the meter of the poem so is the Gazal. Pl  carry on .

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 7, 2013 at 1:20pm

वाह वाह आदरणीय क्या कहने बेहतरीन ग़ज़ल खूबसूरत अशआर हुए हैं बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service