For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद दिन हम को सुहाने आ रहे हैं

याद दिन  हम  को सुहाने आ  रहे हैं

फिर से उन यादों के बादल छा रहे हैं 

हमने घर अपनें बनाये रेत  पर जब

याद  वो  बचपन के मंजर आ रहे हैं

कोयलों  नें धुन  सुरीली  छेड़  दी है

गीत  भी    दीवानें  भौंरे    गा रहे हैं

कर  दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल

छोड़ कर  हम बज्म  सारी जा रहे हैं

माल  पूआ  खाए मुद्दत  हो गयी थी

ख्वाब में   देखा अभी  हम खा रहे हैं

आशु ये  महफ़िल हसीनो  से भरी है

जलवे  पर  इनके  हमें भरमा रहे हैं

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 11:20pm

याद दिन  हम  को सुहाने आ  रहे हैं

फिर से उन यादों के बादल छा रहे हैं
 

हमने घर अपनें बनाये रेत  पर जब

याद  वो  बचपन के मंजर आ रहे हैं

वाह वा बहुत खूब ...
शुरु के अशआर अपने ही रंग के हैं ...
हाँ  बाद में ग़ज़ल में कुछ हल्कापन दिखा
विद्वतजन शिल्प पर पहले ही कह चुके हैं ... उनके कहे और निवेदन को मेरा भी निवेदन समझें ,,,
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 3, 2013 at 9:33pm

आदरणीय आशुतोष मिश्र जी, यादों के इस गुलदस्ते में बचपन से लेकर जवानी तक के रंगीन फूल अपनी मादक खुश्बू बिखेर रहे हैं. अच्छी गज़ल के लिए शुभकामनायें.

Comment by Priyanka singh on July 3, 2013 at 7:26pm

 सुंदर.....बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 7:09pm

आदरणीय आशुतोषजी,  आप सुझाये गये विन्दुओं के अनुसार इस ग़ज़ल पर पुनः प्रयास करें, हमें ही नहीं आदरणीय गनेस भाई को भी उत्तरमिल जायेगा.

शुभेच्छाएँ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2013 at 5:34pm

आप सभी का प्रोत्साहन सतत लिखने की प्रेरणा देता है ....आदरनीय सौरभ जी आप जैसा गुरु मिल जाए तो छात्र दिन दूनी रात चुगुनी उन्नति करेंगे ..आप जिस तरह अपनी बिद्वता की पैनी नजर से बिश्लेशान करते हैं और जो मशविरा देते है वो दिमाग को नव स्फूर्ति और प्रेरणा देता है ...आदरनीय बागी जी आपके सुझाव की तरफ मैंने ध्यान तो दिया पर मुझे बिशेष समझ नहीं हैं कृपया मार्गदर्ष करें  ..हार्दिक धन्यवाद के साथ 

Comment by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 2:40pm

आशु ये  महफ़िल हसीनो  से भरी है

जलवे  पर  इनके  हमें भरमा रहे हैं ..सुंदर प्रस्तुति 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2013 at 11:08am

गजल की प्रस्तुति पर बधाई मतले और मक्ता के शेर बहुत उम्दा लगे, दाद काबुल करे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 3, 2013 at 8:21am

"कर दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल को
छोड़ कर हम बज्म सारी जा रहे हैं"

वाकई सर ये जांसोज़ शे'र है, इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई क़ुबूल फरमाएँ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 3, 2013 at 1:15am
""याददिन हम को सुहाने आ रहे हैं

फिरसे उन यादों के बादल छा रहे हैं""......आदरणीय....डा.आशुतोष जी, सुंदर व भावनात्मक रचना के लिए बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 11:25pm

आदरणीय, आपकी ग़ज़ल की प्रस्तुति पर बधाई.

याद दिन  हम  को सुहाने आ  रहे हैं

फिर से उन यादों के बादल छा रहे हैं 

मतला सुन्दरा ढंग से हुआ है.. .

हमने घर अपनें बनाये रेत  पर जब

याद  वो  बचपन के मंजर आ रहे हैं

उला को क्या ऐसे किया जाय तो गेयता बनेगी ..  हमने अपने घर बनाये रेत पर जब

हो सका है कि घर अपने बनाये  में घर और अपने के बीच अलीफ़ वस्ल की सूरत होने से शायद गेयता बाधित हो रही है.

कोयलों  नें धुन  सुरीली  छेड़  दी है

गीत  भी    दीवानें  भौंरे    गा रहे हैं

उला सुन्दर .. बहुत सुन्दर .. मंज़र सामने आगया.. वाह !

परन्तु सानी में कष्ट है. भी को अनावश्यक लिया गया दिखता है. सानी मिसरा पर फिर से कोशिश किया जाय, सर

कर  दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल

छोड़ कर  हम बज्म  सारी जा रहे हैं

उला के आखिर में एक ग़ाफ़ (२ मात्रा) कम है.  देखलें आदरणीय. 

माल  पूआ  खाए मुद्दत  हो गयी थी

ख्वाब में   देखा अभी  हम खा रहे हैं

हा हा हा.. यह शेर.. खैर .. :-)))

सही शब्द पुआ है न कि पूआ.  तो इस हिसाब से मिसरा बेबह्र हुआ.

आशु ये  महफ़िल हसीनो  से भरी है

जलवे  पर  इनके  हमें भरमा रहे हैं

बढिया.

आपकी कोशिश उत्साहवर्द्धक है आदरणीय. बधाई हो.  बह्रऔर क़ाफ़िया आदि पर आप संयत और स्पष्ट हैं. अब कहन को साधने की कोशिश करें.

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
20 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service