For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"पल्लू"

मुख
मलीन हो रहा है
तेज नष्ट भ्रष्ट
मुझे छोड़ दिया न
तुमने
गोरी के पल्लू ने
धीरे से कानों में कहा
देखो सब घूर रहे हैं
नज़र लगा देंगे
हर नज़र एक सी नहीं होती
ये नज़रें
बचाता हूँ मैं
छुपाता हूँ तुम्हे
ये कटारी सी नज़रें
लिबास तक
तार तार कर देती हैं
मैं पल्लू बस नहीं
मर्यादा हूँ
रिवाज हूँ
संस्कार हूँ
मुझे छोड़ दिया न
अब देखो
अंग्रेजी क्रीम लगा के
गोरी से मेम बन के
अंखियों से लाज हटा के
उनको असमान के ख्वाब दिखा के
क्या मिल रहा है
काम करने से किसने रोका है
तुमने गहने उतारे
मैंने कुछ न कहा
लेकिन शर्म हया भी उतार फेंकी
अब देखो
टकटकी लगाए
घूरते लोग
क्या तुम सबके देखने के लिए हो
क्या तुम सबकी आँखों की तिश्ना मिटाने वाली हो
क्या तुम कोई परा शक्ति हो
जो सबका ध्यान रखे
नहीं न
मैं तुम्हारी शान हूँ
पल्लू हूँ
सर पे डाल के रखो
कम से कम
बुरी नज़र से बची रहोगी
अब हर कोई तो दुशासन तो नहीं होता न
हाँ मगर कन्हैया है भी या नहीं
इसमें शक है

संदीप पटेल "दीप"

Views: 471

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2012 at 4:01pm

सुन्दर भाव बहुत अच्छी रचना 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2012 at 6:58pm

मुख
मलीन हो रहा है
तेज नष्ट भ्रष्ट
मुझे छोड़ दिया न
तुमने
गोरी के पल्लू ने
धीरे से कानों में कहा

सत्य को दर्शाती सुन्दर रचना. बधाई.

Comment by Rekha Joshi on July 27, 2012 at 10:45pm

मैं तुम्हारी शान हूँ 
पल्लू हूँ 
सर पे डाल के रखो 
कम से कम 
बुरी नज़र से बची रहोगी 
अब हर कोई तो दुशासन तो नहीं होता न 
हाँ मगर कन्हैया है भी या नहीं 
इसमें शक है ,बहुत खूब ,क्या बात है पल्लू की ,बधाई 

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 10:32pm

waah bhai sandip patel ji.......

bahut khoob

achhi rachna post ki apne....

मैं तुम्हारी शान हूँ
पल्लू हूँ
सर पे डाल के रखो
कम से कम
बुरी नज़र से बची रहोगी
अब हर कोई तो दुशासन तो नहीं होता न
हाँ मगर कन्हैया है भी या नहीं
इसमें शक है

 

__umda khyal..........badhaai

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 27, 2012 at 7:42pm

मैं तुम्हारी शान हूँ -पल्लू हूँ 
सर पे डाल के रखो, 
कम से कम बुरी नज़र से बची रहोगी  

संदीप कुमार पटेल जी, हमारी लज्जा और परमपरा को उजागर करती 

अच्छी रचना  बधाई 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 27, 2012 at 4:38pm

ये कटारी सी नज़रें 
लिबास तक 
तार तार कर देती हैं ..sateek.

----

मैं पल्लू बस नहीं 
मर्यादा हूँ 
रिवाज हूँ 
संस्कार हूँ ...wah..

--

मैं तुम्हारी शान हूँ 
पल्लू हूँ 
सर पे डाल के रखो 
कम से कम 
बुरी नज़र से बची रहोगी ...umda.

------संदीप पटेल "दीप".ji "पल्लू".ke madhyam se ek sarthak samwad sadha hai aapane.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service