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"किताबें "

 

किताबें
खटखटा रही हैं
दरवाजे दिमाग के
लायी हैं कुछ
सवाल कुछ जबाब
छू रहीं है
दिल को
भिगो रही हैं
मन को
अजीब है न चाँद
बचपन का मामा
और मामा को चंदू मामा
फिर जवानी की दहलीज
न पार नहीं की है
बस कदम रखा है
और अब यार चाँद बन गया
क्या कहूँ
चाँद को
कभी कभी लगता है
मामा ही बना रहे
और कभी
बिना देखे शब् भर चैन नहीं आता
लगता है गर्दिश ही गर्दिश है
ये किताबें भी न
कभी कभी
आँखें फटी रह जाती हैं
पढ़ के
क्या आँखें झील
गजाल सी
कभी स्याह
कभी निर्झर सी
कभी कभी
नूर बरसाती
कितनी रंगीन है दुनिया
हसीन है दुनिया
जिस्म  शरारा
जिस्म शबाब
जिस्म शराब
होंठ गुलाब
जिन भूत
शैतान
बच्चे भी
 कितने शैतान होते हैं
पढ़ लेते हैं
अखबार और पूछते हैं
ये किताबों में तो नहीं
आखिर क्या है
ये कोहिनूर
तब भी आँखें फटी रह जाती है
बता देते हैं
हीरा है गौहर है
खैर पता है
जानते हैं दफ़न कुछ भी नहीं
सिवाए राज के
माटी भी भला दफ़न होती है क्या
बस मिल जाती है माटी में
ये किताबें भी न

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 3:47pm

संदीप  जी नमस्कार

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .........रचना के लिए बधाई

फूल सिंह

Comment by Rekha Joshi on July 30, 2012 at 1:54pm

बच्चे भी 
 कितने शैतान होते हैं 
पढ़ लेते हैं 
अखबार और पूछते हैं 
ये किताबों में तो नहीं 
आखिर क्या है 
ये कोहिनूर 
तब भी आँखें फटी रह जाती है 
बता देते हैं 
हीरा है गौहर है ,संदीप जी ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बहुत खूब ,बधाई 

Comment by Albela Khatri on July 27, 2012 at 10:35pm

badhaai bhaai.........

umda tana bana  kavita ka

जिस्म  शरारा
जिस्म शबाब
जिस्म शराब
होंठ गुलाब

__waah...sundar shabd !

_badhaai !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 27, 2012 at 7:37pm

जानते हैं दफ़न कुछ भी नहीं, सिवाए राज के 
माटी भी भला दफ़न होती है क्या 
बस मिल जाती है माटी में 
ये किताबें भी न 

संदीप कुमार पटेल जी, अच्छी लगी, बधाई 

Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 6:23pm

वाह सर, कितनी खूबसूरती से पूरी बातें कह गये। किताबों मे वो पुरानी बातें पढ़कर आज भी मन बचपन मे चला जाता है। फिर हम वही चाँद की तुलना उस और इस चाँद से करने लगते हैं। और भी बहुत सी बातें।
बहुत सुखद लगी आपकी ये रचना। बधाई स्वीकार कीजिये।

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