For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओढ़ शून्य का झीना आँचल
बढ़ चलें अनायास ही...
शून्य में समेट लेने
प्रकृति का अनंत विस्तार
या फिर,
रचने शून्य से ही
सृजन के अनंत तार...  
जिसमे,
वक़्त का दरिया
हो लय,
रहे मात्र क्षण...
मीलों लम्बा फासला,  
मुकाम, 
डग भर,
तत्क्षण...
नील सागर निहित  
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए
चेतना के कदम....
 
डॉ. प्राची

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on July 4, 2012 at 4:58pm
मीलों लम्बा फासला,  
मुकाम, 
डग भर,
तत्क्षण...
नील सागर निहित  
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए

चेतना के कदम

बहुत खूब , आदरणीय डॉ. प्राची जी ! बहुत सुन्दर शब्द

Comment by Rekha Joshi on July 4, 2012 at 11:51am

आदरणीया प्राची जी ,

अनंत की गहराई में डूबी हुई ,चेतना के कदम ,बहुत बहुत बधाई 
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 4, 2012 at 11:30am

सुन्दर रचना

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2012 at 9:44am
रहे मात्र क्षण...मीलों लम्बा फासला, मुकाम,डग भर,तत्क्षण...
सुन्दर शब्दों के अहसास में मै भी डूब गया क्षणभर- हार्दिक बधाई प्रचिजी 
Comment by आशीष यादव on July 4, 2012 at 1:17am

शून्यता को अनन्त करना और फ़िर अनन्त को शून्य मे समाहित करने का ही काम करती है चेतना. सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 3, 2012 at 11:19pm
या फिर,
रचने शून्य से ही
सृजन के अनंत तार...  
जिसमे,
वक़्त का दरिया.............
हो लय,
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए
चेतना के कदम....
डॉ प्राची जी बहुत सुन्दर ....काश ये बाँध न पाए और हम मुक्त मन से चैतन्य बन शून्य से शिखर की ओर....... 
  ..भ्रमर ५ 
Comment by UMASHANKER MISHRA on July 3, 2012 at 11:16pm

बहुत सुन्दर शून्यता की गहराई का आभास कराती रचना

डा.प्राची सिंह  जी बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
43 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service