For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

हुश्न को माह कहते हो कमाल करते हो
आदमी को खुदा बुत को जमाल करते हो

चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो

नोट में वोट दे ईमान बेच कर तुम ही
बात सुनते नहीं नेता बबाल करते हो

इश्क की आग में सूखा जला हुआ तन्हा
तुम उसे दीद दे ताज़ा निहाल करते हो

है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

छोड़ के हाथ जिसने तोड़ दिया हर रिश्ता
साथ पाने उसी का क्यूँ मलाल करते हो

जो निगाहें बयाँ करती जरा पढो तुम भी
"दीप" बेकार ही उनसे सवाल करते हो

..............दीप..................

Views: 385

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 4, 2012 at 11:34pm

जो निगाहें बयाँ करती जरा पढो तुम भी
"दीप" बेकार ही उनसे सवाल करते हो .....बहुत बढ़िया लाजवाब है वाह वाह ...

Comment by Yogi Saraswat on July 4, 2012 at 12:36pm

है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

बहुत खूब , पटेल जी ! बहुत बढ़िया पंक्तियाँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2012 at 8:17pm

चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो..बहुत सुन्दर  ग़ज़ल बहुत अच्छी 

Comment by Rekha Joshi on July 2, 2012 at 12:07am

संदीप जी ,

है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो बहुत बढ़िया ,बधाई 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 1, 2012 at 11:03pm

चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो

संदीप जी खूबसूरत  गजल ....एक से बढ़ एक ..

  छोड़ के हाथ जिसने तोड़ दिया हर रिश्ता
साथ पाने उसी का क्यूँ मलाल करते हो  ..जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 1, 2012 at 10:31pm

इतनी उम्दा गज़लें  लिखते हो संदीप,

बा-कलम आप तो कमाल करते हो...... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service