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हाँ वो मेरी बेटी है

हाँ  वो  मेरी   बेटी  है  

जो  बगल  में  लेटी है  

मेरा  प्यार  है  वो  

जीवन  की  बहार  है  वो 

हमारे प्यार की   निशानी 

एक अनकही   कहानी   

खिलखिलाहट   उसकी  

दीवाना  करती  है  

जाएगी  दूजे  घर  

एक  डर  भरती   है  

खिली  इस  बगिया   में 

वो  उपवन  कैसा  होगा  

कली  मासूम  सी 

काँटों  मैं  घिरी  होगी

दूँगी  वो  शिक्षा 

होगी रात तो  

कभी सहर होगी  

दुआ  बाबुल  की  है 

सुखी संसार  होगा 

पति का घर उसका 

सुन्दर उपहार होगा 

इस कुल  उस कुल 

अटूट बंधन होगा 

प्रेम प्रतिष्ठा से 

मान बढ़ाएगी 

माँ वधू  बेटी बन 

जग  रीति   निभाएगी 

हाँ  वो  मेरी बेटी  है  

 

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Comment

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Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 9:48am

एक सुन्दर रचना। बेटी ही दो घरों को जोड़ती है।
अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार कीजिए

Comment by Sarita Sinha on May 26, 2012 at 9:00am

आदरणीय कुशवाहा जी, नमस्कार,

बहुत प्यारी, मार्मिक कविता है...बेटी के लिए भावुक सोच को नमन....
Comment by arunendra mishra on May 26, 2012 at 12:17am

अंत्यंत सराहनीय प्रस्तुति ...!!!!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 25, 2012 at 11:42pm

दुआ  बाबुल  की  है 

सुखी संसार  होगा 

पति का घर उसका 

सुन्दर उपहार होगा 

इस कुल  उस कुल 

अटूट बंधन होगा 

प्रेम प्रतिष्ठा से 

मान बढ़ाएगी 

माँ वधू  बेटी बन 

जग  रीति   निभाएगी 

हाँ  वो  मेरी बेटी  है  

आदरणीय  प्रदीप जी बहुत सुन्दर ..काश माँ पिता और इस समाज के मुंह से ये उदगार निकलें 

उनको हमारी उम्र लग जाए  ....भ्रमर ५ 
Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 8:39pm

इस कुल  उस कुल 

अटूट बंधन होगा 

प्रेम प्रतिष्ठा से 

मान बढ़ाएगी 

माँ वधू  बेटी बन 

जग  रीति   निभाएगी 

हाँ  वो  मेरी बेटी  है  BAHUT HI HRIDAY-SPARSHI HAI Pradeep bhai...wah!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 25, 2012 at 1:13pm

आपकी रचना दिल में घर कर गई बहुत   प्यारी प्रस्तुति बधाई

Comment by Yogi Saraswat on May 25, 2012 at 11:45am

दुआ  बाबुल  की  है 

सुखी संसार  होगा 

पति का घर उसका 

सुन्दर उपहार होगा 

इस कुल  उस कुल 

अटूट बंधन होगा 

प्रेम प्रतिष्ठा से 

मान बढ़ाएगी 

माँ वधू  बेटी बन 

जग  रीति   निभाएगी 

हाँ  वो  मेरी बेटी  है  

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय श्री प्रदीप कुशवाहा जी ! बेटी बड़ी अनमोल होती हैं ! बहुत सुन्दर रचना !

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 24, 2012 at 11:43pm

प्रदीप जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । बाबुल का प्यार ही तो है जो बेटी के साथ हमेशा रहता है। बहुत बहुत बधाई !

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