For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तिका: दिल में दूरी... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
दिल में दूरी...
संजीव 'सलिल'
*
दिल में दूरी हो मगर हाथ मिलाये रखना.
भूख सहकर भी 'सलिल' साख बचाये रखना..

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

गैर के डर से न अपनों को कभी बिसराना.
दर पे अपनों के न कभी मुँह को तू बाये रखना..

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..

********
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

Views: 407

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on May 27, 2012 at 12:15am

बागी जी, आशीष जी, महिमा जी, भ्रमर जी, प्रदीप जी, रेखा जी, हसरत जी, राजेश जी, योगी जी!
आपकी गुणग्राहकता को नमन..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 8:37pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

एक भावप्रधान व अर्थप्रधान ग़ज़ल, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर .

Comment by आशीष यादव on May 24, 2012 at 11:20am
आदरणीय आचार्य जी आपको पढ़ना हमेशा सुखद अनुभव होता है। ये रचना भी बहुत अच्छी और ज्ञान वर्धक है।
नमन आपको एवँ आपकी लेखनी को
Comment by MAHIMA SHREE on May 23, 2012 at 9:39pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..

आदरणीय सलिल सर ... बहुत ही बढ़िया .. बधाई  स्वीकार करें



Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 22, 2012 at 11:14pm

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

आदरणीय आचार्य  सलिल जी ..बहुत उपयोगी  और  ..सुन्दर सन्देश देती रचना  ..आभार ....भ्रमर ५ 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 22, 2012 at 5:42pm

आदरणीय  सलिल जी, सादर अभिवादन 

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..
बहुत अच्छा सदेश , बधाई 
Comment by Rekha Joshi on May 22, 2012 at 4:22pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

bahut achhi rachna ,badhai 




\

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 22, 2012 at 3:24pm

wah......wah.......salil ji bahut achchi rachna hai bahut bahut badhai kubool karein


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 22, 2012 at 2:59pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..बहुत सुन्दर सलिल जी बहुत सुन्दर भाव हैं इस ग़ज़ल में बहुत बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on May 22, 2012 at 2:45pm

दिल में दूरी हो मगर हाथ मिलाये रखना.
भूख सहकर भी 'सलिल' साख बचाये रखना..

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

लेकिन साब हो तो उल्टा रहा है , यहाँ भरे पेट वाले भी खुद को गिरवी रखने को तैयार हैं ! बेहतरीन ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service