For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा :- गिद्ध

"चल कल्लुआ जल्दी से दारु पिला, आज बहुत टेंसन में हूँ |"
"अरे, टेंसन और आप? आखिर ऐसी क्या बात हो गई बिल्लू दादा ? 
"यार, कल शाम जिस बूढ़े को हमने लूटा था न, उसने थाने में रपट दर्ज करा दी है |"
"तो दादा इसमें कौन सी टेंसन की बात है ?"
"टेंसन ये है कि हम ने तो कुल २१२ रुपये और एक पुरानी सी घड़ी ही लूटी थी, लेकिन उस बुढऊ ने दस हजार नगद, एक घड़ी और सोने की अंगूठी की रपट लिखवा दी है |"
"रपट लिखवा दी तो कौन सा आसमान टूट पड़ा ?" 
"आसमान ये टूट पड़ा है कल्लुआ कि अब ऊ ससुरा दरोगा, लूट में से आधा हिस्सा मांग रहा है |"

Views: 1258

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 12:30pm

अपने नाम से ही परिलक्षित होती लघु कथा में वाकई यथार्थ सत्य दिखाई पड़ा , आपकी  सन्देश परक लघुकथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर

Comment by Abhinav Arun on April 27, 2012 at 11:23am

बहुत बढ़िया !! कितनी सादगी से लघुकथा का हक़ अदा कर दिया और बात भी कह दी !! बधाई श्री बागी जी !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2012 at 2:57pm

आदरणीय बागी जी, सादर. 

मुझे सीखने  को मिल रहा है.  मैंने भी १० लाइन की रचना पोस्ट की थी . मार्गदर्शन नहीं मिला. आपकी लघु कथा मेरे लेखन हेतु मार्ग दर्शक hogi. बधाई. 

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 26, 2012 at 12:21pm

अपने नाम को सार्थक करती हुई बहुत ही सुंदर लघुकथा कही है बागी जी. कहानी में २ गिद्ध तो वो चोर हैं, तीसरा गिद्ध है हिस्सखोर दरोगा, और मज़े की बात तो ये है कि लुटने वाले बूढे में भी कहीं न कहीं गिद्धवृत्ति दिखाई दे रही है. दरअसल, अपने आसपास से छोटे छोटे लम्हे चुराकर थोड़े से शब्दों में बात कह देने का नाम ही लघुकथा है. आपकी लघुकथा भी बिल्कुल वैसे ही है. केवल वार्तालाप के माद्यम से आपने अपनी बात को बड़े कसे हुए अंदाज़ में कहा है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई बागी जी.      

Comment by AVINASH S BAGDE on April 26, 2012 at 10:31am

aadarniy Bagi ji,

bahut hi jabardast prahar karti ye rachana aaj ki vyawastha pe.

jitani bhi tarif ki jaye kam hai

sateek sanket....sadhuwad.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2012 at 10:10am

आदरणीय सौरभ भईया , लघु कथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 26, 2012 at 1:54am

 आदरणीय मित्र बागी जी ! आपकी यह लघुकथा मात्र लघुकथा ही नहीं बल्कि आज के समाज की विद्रूपताओं  का सटीक चित्रण कर रही है ! साधुवाद मित्रवर !

Comment by आशीष यादव on April 25, 2012 at 11:50pm

waah bagi ji, kitni khubsurti aapne samaaj ki bauraai ko dikha diya. chand samwaado se bta diya ki chor aur police mausere bhai hai.
yah laghukatha bahut pasand aayi.

Comment by वीनस केसरी on April 25, 2012 at 11:36pm

बिल्लू दादा से कहिये नवरत्न का तेल लगाए काहे कि इ तेल में है जड़ी बूटी जो टेंसन कर दे रफू चक्कर :))))

लघुकथा पसंद आई ... बधाई
नाम भी बहुत सोच कर रखा है .... नाम के लिए डबल बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 25, 2012 at 9:51pm

जिस सच्चाई को मकान की दीवारें जानती हैं उस सच्चाई को खुद मकान बोला नहीं करते, बस चुपचाप जीते हैं.

इसी भूमि की संस्कृति और अक्षुण्ण संस्कार की उपज ईशावास्य उपनिषद् की अमरवाणी लाख कहती रहे - मा गृद्धः कस्य स्विद्धनम् ..  यानि, (इस चराचर जगत में उपलब्ध वस्तुओं पर) कभी भी गिद्ध दृष्टि नहीं रखनी चाहिये.    परन्तु, इसी भूमि की संततियाँ क्या जीवन जीने को अभिशप्त हैं !?

भाई बाग़ी जी, आपकी इस लघुकथा में प्रयुक्त आम भाषा और संवाद-शैली जान है. जैसा तथ्य, वैसा कथ्य, जिसे पढ़ कर मन फिलहाल चुपचाप है. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
11 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
14 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
17 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
21 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service