For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,

माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से,
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों ,

( अजाब = दर्द , आब = पानी , नासाज = असहमत )

Views: 909

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 11, 2010 at 3:25pm
नशे में बीती जो जिंदगी मेरे दोस्त
बुरा ख्वाब थी या टूटा आइना मालूम नहीं दोस्त
कभी गम भुलाने को कभी खुशियाँ मनाने को
लगती है कब यह चुपके से मालूम नहीं दोस्त...
छोडूँ इस मुंह-लगी को अब कैसे मेरे दोस्त..
बनती गयी यह जी का जंजाल मेरे दोस्त
बहुत उम्दा ग़ज़ल है..एक एक लफ्ज बड़ी खूबसूरती से सजाया गया है ..लेकिन मुझे ख़ुशी है कि साथ में यह सन्देश भी दोहराया गया है कि पीने के बाद जिगर तो जवाब देगा ही रिश्ते नाते भी खटास से भर जायेंगे ..और हाथ आयेगा सिर्फ पछतावा.. एक बुरा ख्वाब एक टूटा आइना ....
Comment by satish mapatpuri on August 9, 2010 at 4:08pm
माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,
बहुत बढ़िया गणेश जी, मौत से क्या डरना? सुना नहीं है- ज़िन्दगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी.मौत महबूबा है अपने साथ लेके जाएगी. बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है, बहुत-बहुत बधाई.
Comment by Neelam Upadhyaya on August 9, 2010 at 11:18am
बहुत बढ़िया और भावपूर्ण रचना है । इसके साथ ही सलिल जी का मार्गदर्शी टिप्पणी भी जानकारी बढ़ाने वाली है ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 9, 2010 at 5:12am
आदरणीय आचार्य जी, आप के मार्गदर्शन हम सब को बहुत ही लाभान्वित करती है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी रचना को टिप्पणी योग्य समझी,
मतले के मिसरा उला मे जो "दो" लिखा गया है उस दो का मतलब २ से नहीं है बल्कि देने के लिये प्रयोग किया गया है, रुक्न की गणना उर्दू तकतई के अनुसार की गई है, बहर को बनाये रखने के लिये जान कर महेबुबा लिखा गया है, गलती से "कही" लिख गया है जिसका सुधार कर दिया गया है, मैं सीखने के दौर से गुजर रहा हूँ, गलतिया बता देने से सुधार का मौका मिल जाता है, निवेदन है कि आगे भी इसी तरह से मार्गदर्शन करना चाहेंगे,
आपका
एक शिष्य
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 11:08am
दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों , = २२, दो बहुवचन, जवाब एकवचन, सवालों बहुवचन
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों , = २३

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए = २४
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों, = २३

माना की पी गया मै जश्ने यार मे बहुत , = २५, की नहीं कि
डर है जिगर न दे कही जवाब दोस्तों , = २१, कही नहीं कहीं

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा, = २७, महेबुबा नहीं महबूबा
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों, = २२,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से, = २३
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों , = २२

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली, = २४
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों, = २३

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से, = २६
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों , = २२

उर्दू तख्ती के हिसाब से मात्रा गणना में अंतर आयेगा. मुझे लगता है कि हिन्दी व्याकरण और पिंगल के नियमों के अनुसार लिखना अधिक असं तथा कम गलतियों से युक्त होता है. उर्दू में बहर, काफिया और रदीफ के नियम अरबी-फ़ारसी से आये हैं. उनकी बारीकियाँ समझना बेहद कठिन है. इसीलिये हिंदीभाषियों द्वारा लिखी गयी अधिकांश ग़ज़लों को उर्दूवाले खारिज कर देते हैं. शब्दों के उच्चारण के अनुसार टंकण हो तो कुछ त्रुटियों का निवारण हो जाएगा. लिंग और वचन का ध्यान सहज ही रखा जा सकता है. शब्दों के सही रूप और सही अर्थ के लिये हिन्दी और उर्दू के अच्छे शब्द कोष अवश्य प्रयोग करें. गीतोपहरागित-उर्दू के बहुत सी शब्द संपदा सांझी है. इसलिए निस्संकोच प्रयोग करें.
Comment by अनुपम ध्यानी on August 8, 2010 at 2:29am
nice very nice sir!
Comment by Pallav Pancholi on August 7, 2010 at 10:26pm
achhe bhaav hai sir.....
Comment by ABHISHEK TIWARI on August 7, 2010 at 9:42pm
ज़िंदगी के गम को भूल के पी जा आज मयखना दोस्तों,
ख्वाब देखते तो सब हैं,
मगर चढ़ा देआज इनको परवान दोस्तों,
गर पी ना सके खुशी तो क्या?
आज पी जा पूरी महँगाई दोस्तों,
Comment by Rash Bihari Ravi on August 7, 2010 at 7:26pm
jai hooooooooooooooo

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 3:37pm
आदरणीया प्रवीना जोशी जी , आशा दीदी ,आदरणीय मनोज भईया , प्रभाकर भईया,बब्बन भईया , मित्र आशीष जी ,सुनील पाण्डेय जी और प्रीतम जी आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद,जो अपना बहुमूल्य टिप्पणी इस ग़ज़ल पर दिये ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
15 minutes ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
41 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
4 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service