For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का

122 122 122 122 

कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का

वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का

सुधार

नज़र से महब्बत जताना किसी का

हँसाना किसी का रुलाना किसी का

भुलाओगे कैसे सताना किसी का

नहीं रोक पाई कभी चाहकर मैं

दबे पा ख़यालों में आना किसी का

है यह भी महब्बत का दस्तूर यारो

न दिल भूले जो दिल से जाना किसी का

बहुत कोशिशें कीं मनाने की फ़िर भी

न मुमकिन हुआ लौट आना किसी का

दिल ए बेक़रारी की हद ही तो थी वह

जो समझे नहीं हम बहाना किसी का

नहीं रास आया ज़माने को "निर्मल" 

मेरे दिल को अपना बताना किसी का

मौलिक व अप्रकाशित

रचना निर्मल

Views: 986

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2021 at 8:24pm

वाह क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीया...बधाई

Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 7:03pm

//वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का ....इज़हार और जताना एक ही वंश के शब्द हैं, लगभग पर्यायवाची //

सहमत ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 6:23pm

आ. रचना जी,
ग़ज़ल पर गुणीजन पहले ही टिप्पणी दे चुके हैं अत: अधिक कहने कि संभावना नहीं है फिर भी मतला देखने से भाषाई त्रुटी ध्यान में आती है.
वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का ....इज़हार और जताना एक ही वंश के शब्द हैं, लगभग पर्यायवाची अत: इस पर गौर करें.
सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 5:07pm

//कि ख़ुद से भी ज़्यादा भरोसा किया था'//

जनाब अमीर साहिब, आपके सुझाये इस मिसरे में आपने 'ज़ियाद:' शब्द को 22 पर लिया है जो ग़ज़ल में उचित नहीं,इसे 122 पर ही लेना उचित होता है 

जी मुहतरम बहतर है। 

Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 3:28pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'हँसाना किसी का रुलाना किसी का

भुलाओगे कैसे सताना किसी का'

इस मतले पर जनाब अमीर जी का सुझाव अच्छा है ।

'दिल ए बेक़रारी की हद ही तो थी वह'

इस मिसरे को यूँ कह सकती हैं:-

'हमारी महब्बत की मासूमियत थी'

Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 3:20pm

//कि ख़ुद से भी ज़्यादा भरोसा किया था'//

जनाब अमीर साहिब, आपके सुझाये इस मिसरे में आपने 'ज़ियाद:' शब्द को 22 पर लिया है जो ग़ज़ल में उचित नहीं,इसे 122 पर ही लेना उचित होता है । 

Comment by Shyam Narain Verma on December 10, 2021 at 9:54am
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by Rachna Bhatia on December 9, 2021 at 7:46pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय:। आपने मतला बहुत अच्छा कर दिया आभार।शेर पर इस्लाह आपकी अच्छी है पर तक़ाबुल ए रदीफ़ एब आ जाएगा।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 9, 2021 at 6:22pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ख़ूबसूरत अहसासात से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ।

कुछ मशविरे पेश करना चाहता हूँ, 

'हँसाना किसी का रुलाना किसी का

 भुलाओगे कैसे सताना किसी का'     इस शे'र में शेरियत कम है, मुनासिब समझें तो यूँ कर सकते हैं - 

'हँसाना रुलाना रुला कर हँसाना 

भुलाएं वो कैसे सताना किसी का' 

'दिल ए बेक़रारी की हद ही तो थी वह' इस मिसरे का शिल्प और वाक्य विन्यास सही नहीं है, मिसरा यूँ कह सकते हैं - 

'कि ख़ुद से भी ज़्यादा भरोसा किया था'  

 जो समझे नहीं हम बहाना किसी का'     सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
4 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
6 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service