For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2122   2122   2122   212

इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा ।
जो भरम दिल में बचा है खुद रिहा हो जाएगा ।

इतने बुत मौजूद है तेरे खुदा के भेष में,
सजदा करते-करते तू खुद से जुदा हो जाएगा ।

सब पुराने पेड़ों को गर काट दोगे तुम यूं ही,
घर सलामत भी रहा तो लापता हो जाएगा।

ढूंढना अब छोड़ दे उस तक पहुँच का रास्ता,
खुद को पाले तो तू खुद ही रास्ता हो जाएगा ।

छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर ,
ऐसा करने से तो खुद से फ़ासला हो जाएगा।

रख किसी मायूम के हाथों पर अपना हाथ तू ,
इन लकीरों में जमा लावा हिना हो जाएगा ।

नींव के पत्थर हिलाने से बिखर जाता है घर ,
आपसे किसने कहा माज़ी नया हो जाएगा।

खूबसूरत वक्त की पहचान इतनी है फ़क़त,
गिरते ही उठने का तुझको हौसला हो जाएगा ।

उसकी कुदरत ने ठिकाने ला दिया सबको यहाँ ,
कोई कहता था ख़ुदा वो दूसरा हो जाएगा ।

मुझको इन ग़ज़लों में दिल के राज लिखने थे कईं ,
डर है लेकिन मेरा चेहरा बदनुमा हो जाएगा ।

अब वफ़ादारी का मतलब ये है बस मेरे लिए,
तुझपे लब खोले बिना शायर फना हो जाएगा ।

वो मेरा बेहद करीबी है मगर मैं क्या करूं ,
भीड़ में उसको पुकारूं तो खफा हो जाएगा ।

आपने वा वाह कहा इतना बहुत है दोस्तों ,
कोई मिसरा फिर कभी बिल्कुल नया हो जाएगा ।

इतना भी मासूम होने का दिखावा मत करो ,
इक जरा सी चोट से सब कुछ बयां हो जाएगा ।

आपसे "अहसास" बिल्कुल दूर है तो इसलिए ,
आपका रंगीन मौसम में बेमज़ा हो जाएगा।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 445

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2021 at 9:08am

बढ़िया कहा भाई मनोज जी...बधाई कुबूल करें...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 12:33pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। जनाब लक्ष्मण धामी जी से सहमत हूँ उनकी इस्लाह पर ग़ौर कीजियेगा।

'इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा' इस मिसरे की शुरुआत यूँ करना बहतर होगा - उसका इक दिन... 

'आपसे "अहसास" बिल्कुल दूर है तो इसलिए ,

आपका रंगीन मौसम में बेमज़ा हो जाएगा।      इस शे'र का शिल्प कसावट चाहता है, इसे यूंँ कह सकते हैं-

"आपको अहसास गर कुछ भी कहीं होता नहीं 

 फिर तो ये रंगीन मौसम बेमज़ा हो जाएगा"      सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 11:21am

आ. भाई मनोज जी सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

/छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर/ में शेर - ओ-सुखन(शेरोसुखन) कर लें।
/रख किसी मायूम के हाथों पर अपना हाथ तू /में
मुझे मायूम का अर्थ समझ नहीं आया। कहीं मासूम तो नहीं ।

/आपने वा वाह कहा इतना बहुत है दोस्तों/ में मेरे हिसाब से 'वाह वाह' ही होना चाहिए । शेष भाई समर जी का इंतजार कीजिए।

/आपका रंगीन मौसम में बेमज़ा हो जाएगा।//इसमें "में "अतिरिक्त है । देखिएगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service