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3 -मुक्तक

1.
हर रंज़ पे .मुस्कुराता हूँ
तन्हा तुझे गुनगुनाता हूँ
किस रंग पे मैं यकीं करूँ
हर रंग से फ़रेब खाता हूँ
..................................
2.
हर तरफ बाज़ार नज़र आता है
हर रिश्ता लाचार नज़र आता है
अब गुल नहीं महकते बहारों में
हर शाख़ पर ख़ार नज़र आता है
.......................................................
3.
रास्ते बदल जाते हैं ...तूफाँ जब आते हैं
यादों के अब्र में ...अरमाँ पिघल जाते हैं
रुकते नहीं अश्क. .कफ़स में पलकों की
किनारे तोड़ वो आँख से निकल आते हैं


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on June 13, 2014 at 3:45pm


आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मुक्तकों पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2014 at 3:43pm


आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी मुक्तकों पर आपकी प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2014 at 3:41pm


आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपई जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2014 at 3:41pm


आदरणीय गिरिराज भंडारी जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 13, 2014 at 12:10pm

सरना जी

बहुत सुन्दर मुक्तक है  i आपको बधाई i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 13, 2014 at 8:59am

आदरणीय सुशील भाई सुंदर मुक्ताकों के लिए बहुत बहुत बधाई .

Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:41pm

सुंदर मुक्तक , बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:41pm

आदरनीय सुशील सरन भाई , तीनो मुक्तक बहुत सुन्दर लगे , बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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