For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

3 -मुक्तक

1.
हर रंज़ पे .मुस्कुराता हूँ
तन्हा तुझे गुनगुनाता हूँ
किस रंग पे मैं यकीं करूँ
हर रंग से फ़रेब खाता हूँ
..................................
2.
हर तरफ बाज़ार नज़र आता है
हर रिश्ता लाचार नज़र आता है
अब गुल नहीं महकते बहारों में
हर शाख़ पर ख़ार नज़र आता है
.......................................................
3.
रास्ते बदल जाते हैं ...तूफाँ जब आते हैं
यादों के अब्र में ...अरमाँ पिघल जाते हैं
रुकते नहीं अश्क. .कफ़स में पलकों की
किनारे तोड़ वो आँख से निकल आते हैं


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 555

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:21pm

आदरणीय विजय निकोर जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहमयी प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया  

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:20pm

परम आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी मुक्तकों पर आपकी स्नेह बरखा से सृजन हेतु नयी शक्ति मिली  .... आपका हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:18pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 7:53am

अति सुन्दर मुक्तक। बधाई, आदरणीय सुशील जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 11:11pm

मुक्तकों के लिए बधाई आदरणीय.. .

दिल से कही बातें बयां हुई हैं .. .

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 19, 2014 at 11:26am

तीनो मुक्तक पसंद आये आ० सुशील सरना जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on June 16, 2014 at 3:55pm

आदरणीया महिमा जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:14pm

तीनो मुक्तक सुंदर बने है आदरणीय बधाई आपको सादर

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2014 at 12:20pm

आदरणीया मीना पाठक जी मुक्तकों  पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Meena Pathak on June 13, 2014 at 5:50pm

बहुत खूब .. बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service