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चेप्टर -1 - दोहे

चेप्टर -1 - दोहे

निंदा को आतुर रहें, करें नहीं गुणगान
मैल हिया में देख के ,रूठ गए भगवान

मालिक कैसा हो गया ,  तेरा ये इंसान
बन्दे तेरे लूटता , बन  कर वो भगवान


तेरा  अजब  संसार  है,हर  कोई  बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल


संस्कार  सब  खो गए ,  बढ़ने  लगी  दरार
जनम जनम के प्यार का, टूट गया आधार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 6, 2015 at 11:33am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी और आ. नीरज जी की बात से मैं सहमत हूँ। आपका सुझाव बहुत ही बढ़िया है। और ये उचित भी लग रहा है। हार्दिक आभार। सर एक बात और मुझे संस्कार में मात्रा दोष में संशय हो रहा है। मैंने सर मैंने 'संस्कार ' की गणना ( सं २ +आधा स १ +का २ +र १ =6 )की थी क्या स्वरहीन व्यंजन पर अनुस्वार (.) के बाद आधे व्यंजन की मात्रा गौण हो जाती है ? अपने मार्गदर्शन से अनुग्रहित करें । आपके सहयोग का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 6, 2015 at 11:29am

आदरणीया   Dr. (Mrs) Niraj Sharma जी दोहों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।  तेरा अजब संसार है''में तो एक मात्रा की वृद्धि हो रही है इस ओर ध्यानाकर्षण के लिए हार्दिक आभार। लेकिन आदरणीया जी मुझे संस्कार में मात्रा  दोष समझ नहीं आ रहा मैंने मैंने 'संस्कार ' की गणना ( सं २ +आधा स १ +का २ +र १ =6 )की थी क्या स्वरहीन व्यंजन पर अनुस्वार (.) के बाद आधे व्यंजन की मात्रा गौण हो जाती है ? अपने मार्गदर्शन से अनुग्रहित करें । हार्दिक आभार। आपके सुझाव का हार्दिक आभार।  

Comment by Sushil Sarna on July 6, 2015 at 11:22am

आदरणीय vijay nikore   जी दोहों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार  

Comment by Sushil Sarna on July 6, 2015 at 11:21am

आदरणीय  shree suneel  जी दोहों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2015 at 10:46am

आदरणीय सुशील भाई , बढ़िया दोहा वली की रचना हुई है , आपको हार्द्क बधाई ,  आ. नीरज  जी की बात से सहमत हूँ ,

तेरा  अजब  संसार  है   -- इस पद मे 14 मात्रा हो रही है   -- अजब गज़ब दुनिया बनी , हर  कोई  बेहाल   , किया जा सकता है

Comment by vijay nikore on July 6, 2015 at 2:55am

 सुन्दर दोहों के लिए बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 5, 2015 at 1:08pm

तेरा अजब संसार है व संस्कार सब खो गए  में मात्रा दोष है एक एक मात्रा की वृध्धि होती है , कुल मिला कर सुन्दर दोहे।

Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 9:07pm
तेरा अजब संसार है,हर कोई बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल..
आदरणीय सुशील सरना सर जी, अच्छे दोहे हैं. बधाई आपको.
Comment by Sushil Sarna on July 4, 2015 at 8:10pm

 आदरणीय    narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 4, 2015 at 8:10pm

 आदरणीय   मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

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