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अम्बर को पाती भिजवाई -एक गीत

अम्बर को पाती भिजवाई,

व्याकुल होकर धरती ने.

 

सभी जरूरी संसाधन दे,

नर को जीना सिखलाया.

मर्यादा का पालन लेकिन,

कभी कहाँ वह कर पाया.

 

अपने मन की बात बताई,

व्याकुल होकर धरती ने.

 

पर्वत छीने, नदियाँ छीनी,

बरगद, पीपल छीन लिए.

नित्य अक्ष पर घूम रही हूँ,

अपनी देह मलीन लिए.

 

आसमान को व्यथा सुनाई,

व्याकुल होकर धरती ने.

 

चीरहरण की पीड़ा कब तक,

सहना मुझको बतला दो.

अंगारों पर चलूँ कहाँ तक,

इतना मुझको बतला दो.

 

अपनी जलती देह दिखाई,

व्याकुल होकर धरती ने.

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 10:21am

ह्रदय से आभार आदरणीय Shyam Narain Verma  जी आपका 

Comment by Shyam Narain Verma on June 2, 2018 at 10:15am
बहुत बढिया गीत रचना हुई है , बधाइयाँ , 
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 10:08am

अतिशय आभार आपका आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी आपका 

Comment by Ajay Kumar Sharma on June 1, 2018 at 11:09pm

बहुत सुन्दर रचना...

बधाई स्वीकार करें...

कृपया ध्यान दे...

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