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उस से मिलकर तुझे हुआ क्या है ।
पूछते लोग माजरा क्या है ।।

सच बताने पे आप क्यूँ रोये ।
आइने से हुई ख़ता क्या है ।।

है तबस्सुम का राज क्या उनके ।
आंख में गौर से पढा क्या है ।।

अश्क़ हैं बेहिसाब हिस्से में ।
ज़श्न के वास्ते बचा क्या है ।।

इस तरह रोकिये नहीं मुझको ।
पूछिये मत मेरा पता क्या है ।।

आप मतलब की बात करते हैं ।
आपके साथ फायदा क्या है ।।

छोड़िये बात आप भी उसकी ।
उसकी बातों में अब रखा क्या है ।।

गर्म चर्चा है दिलब है जलाने की ।
देखिए फिरव धुँआ उठा क्या है ।।

जी रहा हूँ तमाम गर्दिश में ।
अब सिवा इसके रास्ता क्या है ।

चाँद निकलेगा उस दरीचे से ।
आसमाँ को तू देखता क्या है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on October 12, 2017 at 10:57am
सब त्रुटियाँ तो ठीक हो गईं लेकिन ये शैर :-
'गर्म चर्चा है दिलब है जलाने की
देखिये फिरव धुआँ उठा क्या है'
इसे भी दुरुस्त कीजिये ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 11:35pm
आ 0 मु0 आरिफ साहब सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 11:34pm
आ0 राजा नवादवी साहब सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 11:33pm
आ0 कल्पना भट्ट जी नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 11:32pm
आ0 सालिम रजा रेवा साहब सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 11:31pm
आ0 कबीर सर सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 11:30pm
आ0 अफरोज सहर साहब त्रुटि ठीक कर दिया है । सादर आभार ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 3:32pm
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 2:47pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
टंकण त्रुटियों के कारण मिसरे बेबह्र हो रहे हैं,उन्हें दुरुस्त कीजिये ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 2:42pm

अश्क़ हैं बेहिसाबव हिस्से में ।
ज़श्न के वास्ते बचा क्यान् है ।।

इस तरह रोकिये बनहीं मुझको ।
पूछिये मत मेराब पता क्या है ।। बहुत खूब आदरणीय | हार्दिक बधाई  आपको 

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