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खुद से मुझ को अलग करो----- ग़ज़ल पंकज मिश्र द्वारा

22 22 22 22

खुद से मुझ को अलग करो तो
फिर कहना तुम ज़िंदा भी हो

याद मुझे करते हो तुम भी
हिचकी से ये कहलाया तो

कोल कर दिया अरमाँ जिससे
कोहेनूर बन कर चमकें वो

दुर्लभ एक सुकून प्यास में
साक़ी को ही लौटाया तो

बदली छाई मानो तुमने
ज़ुल्फ़ घनी फिर बिखराया हो


मौलिक अप्रकाशित

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 11:08pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'कोह नूर बन चमकें वो'इस मिसरे की बह्र चेक करें
'दुर्लभ एक सुकून प्यास में'इस मिसरे की बह्र भी चेक करें ।
'बदली छाई लगा कि तू'ने'इस मिसरे की बह्र भी चेक करें ।
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 17, 2017 at 11:53am

gud 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 16, 2017 at 8:00pm
वाह वाह खूब ग़ज़ल हुई आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2017 at 6:12pm

आ. पंकज भाई बढिया गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 5:44pm

अच्छी ग़ज़ल है आ. पंकज भाई, कोल का क्या खूब प्रयोग किया है आपने

Comment by Shyam Narain Verma on September 16, 2017 at 10:14am
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 

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