For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मापनी २२ २२ २२ २२

 

झील सी गहरी नीली आँखें

हैं कितनी सकुचीली आँखें

 

खो देता हूँ  सारी सुध बुध

उसकी देख नशीली आँखें

 

यादों  के सावन  में भीगीं

हो गईं कितनी गीली आँखें

 

मोम बना दें पत्थर को भी

छोटी  सीली  सीली आँखें

 

राह तुम्हारी  तकते तकते

हो गईं  हैं पथरीली  आँखें

 

बढती बेलें देख के’ अपनी

होतीं  हैं    गर्वीली  आँखें

प्रेम अगन सुलगाने को तो

हैं माचिस की तीली आँखें

 

गम  तो है  वैसे का वैसा

रोतीं  खाली-पीली  आँखें

 

सुन लेतीं सब कह देतीं सब

कहने  को  शर्मीली  आँखें

 

 "मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 1440

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 9, 2017 at 9:38am

आदरणीय  Gajendra shrotriya जी हौसलाअफजाई के लिए आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on August 8, 2017 at 9:42pm
'साजिशन'की कोई एक मिसाल पेश कीजिये,अगर ये आम है तो,और मिसाल गूगल से नहीं साहित्य से पेश कीजियेगा,शुक्रगुज़ार रहूँगा ।
Comment by Niraj Kumar on August 8, 2017 at 7:21pm

जनाब समर कबीर साहब, आदाब, 

'साजिशन' हिंदी में अब आम प्रोयोग का हिस्सा है 'सकुचीली' नहीं है. आप दोनों शब्द गूगल पर सर्च करें फर्क का पता चल जाएगा. 

सादर 

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 8, 2017 at 7:20pm

श्री  बसंत कुमार शर्मा जी,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है | सभी शेर बहुत उम्दा हैं | निम्न शेर के लिए विशेष मुबारकबाद भाई :
" बढती बेलें देख के’ अपनी

होतीं  हैं    गर्वीली  आँखें"

 सप्रेम | 

Comment by Samar kabeer on August 8, 2017 at 7:07pm
जनाब नीरज साहिब आदाब,यहां आपको 'सकुचीली का प्रयोग खटक रहा है,और जनाब गिरिराज भाई की ग़ज़ल पर आप 'साजिशन'के प्रयोग की हिमायत कर रहे हैं,ये दो बातें क्यों ?
Comment by Niraj Kumar on August 8, 2017 at 7:02pm

आदरणीय बसंत जी, अच्छी ग़ज़ल हुयी है दाद के साथ मुबारकबाद.

मतले में संकोची के अर्थ में सकुचीली का प्रयोग थोड़ा खटकता है.

सादर 

Comment by Samar kabeer on August 8, 2017 at 6:39pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Gajendra shrotriya on August 8, 2017 at 1:11pm
वाहह!आँखो से झलकते विविध रंगों को बखूबी दर्शाया है आपने आ० बसंत कुमार जी। बहुत बधाई आपको।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 8, 2017 at 11:17am

आदरणीय Mohammed Arif जी हौसलाफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 8, 2017 at 11:17am

आदरणीय Ravi Shukla  जी आपके स्नेह को सादर नमन 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
18 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service