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ग़ज़ल "दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है"

1222 1222 122
दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है।
फ़क़त बातों से कुछ होता नहीं है।।

***
बुरा अंजाम होता है बुरे का।
ख़ुदा से कुछ भी तो छुपता नहीं है।।

***
कई धोख़े मिले हैं जिंदगी में।
किसी पर अब यकीं होता नहीं है।।

***
मुहब्बत में मुझे इक बेवफा ने।
दिया वो जख़्म जो भरता नहीं है।।

***
यकीं कोई न अब उस पर करेगा।
वो अपनी बात पर टिकता नहीं है।।

***
उसे है याद बातें सब पुरानी।
मगर अब गाँव वो जाता नहीं है।।

***
भले "इंसान" की पहचान है ये।
किसी को वो बुरा कहता नहीं है।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by surender insan on August 8, 2017 at 1:47pm
आदाब मोहतरम समर कबीर साहब। जी बेहद दिली शुक्रिया आपका जी।बहुत बहुत आभार जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 5:14pm

बेहतरीन ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ आदरनीय सुरेन्द्र भाई जी ।

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2017 at 12:47pm

आदरणीय सुरेंद्र जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने शेर दर शेर दिली मुबारकबाद कुबूल करें नीलेश जी की बात से हम भी सहमत हैं

Comment by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 1:12pm
अच्छे अशआर हुए हैं आ०सुरेन्द्र जी। बधाई।
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 4, 2017 at 12:56pm

बहुत खूब आदरणीय सुरेंद्र इंसां जी,, बहुत अच्छी ग़ज़ल  कही है आपने 

Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 4, 2017 at 12:41pm
पद्यात्मक ज्ञान सदैव सर्वग्राह्य होता है। अच्छी रचना के लिए बहुत बधाई।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2017 at 11:42am
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय..बधाई
Comment by नाथ सोनांचली on August 4, 2017 at 4:35am
जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 3, 2017 at 3:35pm

बहुत सुंदर अशआर वाह 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 3, 2017 at 11:43am
वाह आ, सुरेंद्र जी।
अच्छी ग़ज़ल हुई है।
मतले में आ काफ़िया लेने के बाद आपने अपनी कलम को ता पर सीमित क्यों कर लिया?
प्रयास के लिये बधाई

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