For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ १२१२ २२

 

अंधे बहरे हैं चंद गूँगे हैं

मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं

 

मैं कहीं ख़ुद से ही न मिल जाऊँ

ये मुखौटे नहीं हैं पहरे हैं

 

आइने से मिला तो ये पाया

मेरे मुँह पर कई मुँहासे हैं

 

फेसबुक पर मुझे लगा ऐसा

आप दुनिया में सबसे अच्छे हैं

  

अब जमाना इन्हीं का है ‘सज्जन’

क्या हुआ गर ये सिर्फ़ जुमले हैं

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 949

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 12:53pm

आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , अच्छी गज़ल कही है , सभी अशआर मानी खेज़ हुये है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on October 2, 2016 at 10:11am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी बढ़िया !!!

बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए!!!

सादर!!!

Comment by Ravi Shukla on October 2, 2016 at 8:28am
आदरणीय धर्मेन्द्र जी बढ़िया अशआर कहे है पढ़ कर अच्छा लगा । बहुत बहुत बधाई । आदरणीय समर साहब के कथन को देखें तो शायद लफ्ज़ परिधि के वज़्न से उसके रुक्न में प्रयोग से हो सकता है । उनका इंगित अभी आया नही है जिससे स्पष्ट हो । सादर
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 1, 2016 at 10:36pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जू जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 1, 2016 at 10:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मन्डल साहब। इस बह्र मेँ पहले रुक्न मेँ 2122 की जगह 1122 लेने की छूट होती है। और चेहरा, चह्रा 22 बा‍ँधा जाता है। वही बा‍ँधा है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 1, 2016 at 10:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब। जनाब मेरे  हिसाब से तो लय सही है। कृपया मार्गदर्शन करेँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2016 at 1:03pm

वाह आदरणीय धर्मेन्द्र सज्जन जी दमदार अशआर हुए हैं, बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2016 at 11:45am

आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी , बहुत सुन्दर गजल कही आपने | निवेदन कि  

मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं"

  २१२२  १२१२  २२  में तकती कर के बताइए , मैं  अपनी खुद की शंका दूर करने के लिए पूछ रहा हूँ | "चेहरे ' की मात्रा क्या लिया है आपने ?

सादर 

Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 10:32am
जनाब धर्मेंद्र कुमार जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
छटे शैर के सानी मिसरे की लय चेक कीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service