For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२२१ २१२१ १२२१ २१२


पगडंडियों के भाग्य में कोई नगर कहाँ ?
मैदान गाँव खेत सफ़र किन्तु घर कहाँ ? 
 
होठों पे राह और सदा मंज़िलों की बात
पर इन लरजते पाँव से होगा सफ़र कहाँ ? 
 
हम रोज़ मर रहे हैं यहाँ, आ कभी तो देख..
किस कोठरी में दफ़्न हैं शम्सो-क़मर कहाँ ? 
 
सबके लिए दरख़्त ये साया लिये खड़ा
कब सोचता है धूप से मुहलत मगर कहाँ !
 
जो कृष्ण अब नही तो कहाँ द्रौपदी कहीं ?
सो, मित्रता की ताब में कोई असर कहाँ ? 
 
क़ातिल तरेर आँख.. जताता है दोस्ती..
ऐसे में कौन कण्ठ ही होगा मुखर कहाँ ? 
 
अहसास ही सवाल थे अहसास ही ज़वाब
’रक्खी है आज लज्जत-ए-दर्द-ए-जिगर कहाँ !’
********
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1091

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:03am
इस ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय ।
Comment by Samar kabeer on August 16, 2016 at 11:54pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,बहुत ही उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को ।

पगडंडियों के भाग्य में कोई नगर कहाँ ?
मैदान गाँव खेत सफ़र किन्तु घर कहाँ ?

;- कामयाब मतला है लेकिन अगर इसे उर्दू लिपि में लिखेंगे तो ईताए जली का दोष पाया जायेगा ।

होठों पे राह और सदा मंज़िलों की बात
पर इन लरजते पाँव से होगा सफ़र कहाँ ?

:-ज़ईफ़ी और लाचारी का भरपूर बयान है,वाह ।

हम रोज़ मर रहे हैं यहाँ, आ कभी तो देख..
किस कोठरी में दफ़्न हैं शम्सो-क़मर कहाँ ?

:-शैर ख़ूब है ,लेकिन सानी मिसरे का बयान रदीफ़ से मेल नहीं खा रहा है ,रदीफ़ सवालिया है और सानी मिसरे का यह टुकड़ा 'किस कोठरी में दफ़्न है' ये भी सवालिया है ,एक ही मिसरे में दो सवाल हो गये ? अगर 'किस' को 'इस' करदें तो शैर का मफ़ूम पूरी तरह साफ़ हो जायेगा ,ये सिर्फ़ मेरी नाचीज़ राय है ।

सबके लिए दरख़्त ये साया लिये खड़ा
कब सोचता है धूप से मुहलत मगर कहाँ !

:-अच्छा शैर है ।

जो कृष्ण अब नही तो कहाँ द्रौपदी कहीं ?
सो, मित्रता की ताब में कोई असर कहाँ ?

:- इस शैर के ऊला मिसरे में मफ़ूम उलझ रहा है,'कहाँ द्रोपदी कहीं',यहाँ भी इस मिसरे में 'कहाँ' शब्द भर्ती का है ,देखियेग ।

क़ातिल तरेर आँख.. जताता है दोस्ती..
ऐसे में कौन कण्ठ ही होगा मुखर कहाँ ?

:- बहुत उम्दा शैर हैं,'आँखें तरेरना' मुहावरे का बहुत ख़ूबसूरत इस्तेमाल हुवा है,बहुत ख़ूब,वाह ।

अहसास ही सवाल थे अहसास ही ज़वाब
’रक्खी है आज लज्जत-ए-दर्द-ए-जिगर कहाँ'

:- उम्दा गिरह लगाई है ।

इस उम्दा ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ,इस तरह में मैंने भी दो ग़ज़लें कहीं थीं जो मेरे दूसरे ग़ज़ल संग्रह 'गुल' पृष्ठ क्रमांक 62-63 पर पढ़ सकते हैं,पहली ग़ज़ल का मक़्ता यहाँ साझा करता हूँ :-

"जब शाख़ें सूख जाऐंगीं बूढ़ें दरख़्त की
ढूँडोगे तुम "समर" को ,मिलेगा "समर" कहाँ"
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 16, 2016 at 10:16pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय सौरभ जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 16, 2016 at 9:10pm
सादर नमन श्रद्धेय!उम्दा भाव,उम्दा ग़ज़ल!
Comment by Sushil Sarna on August 16, 2016 at 7:23pm

पगडंडियों के भाग्य में कोई नगर कहाँ ?
मैदान गाँव खेत सफ़र किन्तु घर कहाँ ?

होठों पे राह और सदा मंज़िलों की बात
पर इन लरजते पाँव से होगा सफ़र कहाँ ?

शानदार आदरणीय सौरभ सर शानदार .... खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ ऐसे अशआर ग़ज़ल को एक नयी बुलंदी बख्शते हैं ... लगता है जैसे कोई बादे नसीम ज़िस्म को एक सिहरन दे गयी हो ... बहरहाल अहसासों को जुबां देती इस बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति पर आपको हार्दिक हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 16, 2016 at 5:56pm
// हम रोज़ मर रहे हैं यहाँ, आ कभी तो देख..
किस कोठरी में दफ़्न हैं शम्सो-क़मर कहाँ ? //...आह और वाह...बहुत ही विचारोत्तेजक गंभीर अशआर के साथ परिदृश्य को शाब्दिक करती हुई बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई और आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।
Comment by Shyam Narain Verma on August 16, 2016 at 4:47pm
हार्दिक बधाइ स्वीकार करें इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
19 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service