पोते को पूरे समय लेपटॉप के आगे आंखे गड़ाये देख शर्मा जी! को खासी चिंता होने लगी।लेकिन जब भी वो इस बारे मेंउससे कुछ बोलते, वो उखड़ के कहता-"दादाजी नेट पर जरूरी काम कर रहा हूँ, फालतू समय बरबाद नहीं।" परन्तु उसकी ये बात उन्हें तनिक भी मुतमईन ना कर पाती।तब उन्होंने अपने बेटे से इस बारे में बात की तो-
"अरे बाबूजी!आपको तो इस बात की ख़ुशी होना चाहिये, कि इंटरनेट से दिन बा दिन उसकी जानकारी का स्तर बढ़ रहा है और एक आप हैं कि...।"
"बेटा जानकारी होना अच्छी बात है परंतु उसकी कोई सीमा तो होनी चाहिए।लेकिन..."
वो बात पूरी करते इस से पहले बेटा बोल उठा।
"लेकिन क्या?बाबूजी!कम से कम बाहर जाकर आवारागर्दी से तो लाख बेहतर है कि घर बैठ कर समय का सदुपयोग कर रहा है।"
"देखो बाहर जाकर आवारागर्दी की दुहाई तो दो मत,इतनी तो मुझे भी समझ है।लेकिन ये जो नेट पर आवारागर्दी हो रही है इस पर विचार जरूर करना।"
"आपकी बातें सुनकर तो लग रहा है उसे नहीं,बल्कि आपको समझाने की जरूरत है।अच्छा बताओ पहले चाह कर भी हर क्षेत्र की जानकारी होना दूर की कौड़ी थी या नही? लेकिन आज अगर दुनिया को टक्कर देनी है तो जबर्दस्त ज्ञान होना बहुत जरूरी है और इसके लिये बस एक क्लिक, और जानकारी उदाहरण सहित हाजिर।"
"बस बेटा!इसी एक क्लिक की ही तो चिंता हो रही है, ये बेमक़सद है या बामक़सद।"
मौलिक एवं अप्रकाशित
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हार्दिक बधाई राहिला जी!ये क्लिक बामकसद है या बेमकसद!बेहतरीन प्रस्तुति!
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