For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फिल बदीह -- अब ज़रा सा मुस्कुराना आ गया ( गिरिराज भंडारी )

 2122    2122    212

क्या वही फिर से ज़माना आ गया ?

आदमी को दोस्ताना आ गया

 

शर्म उनकी आँखों मे दिखने लगी

इसलिये नज़रें चुराना आ गया

 

फ़िक्र अब करते नहीं यादों की हम

अब हमें उनको भुलाना आ गया

 

ऊब कर रोने से दिल को देखिये  

अब ज़रा सा मुस्कुराना आ गया

 

जब से बातिल हो गये अहबाब सब

आइनों से मुँह छिपाना आ गया

 

प्यार की फित्नागिरी तो देखिये - फित्नागिरी - जादूगरी

बेसुरों को गुनगुनाना आ गया

 

आप के पीछे चली आयी बहार

और मौसम शाइराना आ गया

 

हाथ कासे तक गया तो था मगर  -- कासा= भिक्षा पात्र

याद अपना फिर घराना आ गया

 

रफ़्ता रफ्ता रास्ता कटता गया

और अपना भी ठिकाना आ गया

*********************************

मौलिकेवँ अप्रकाशित

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 2:19pm

आदरणीय राहुल भाई , आपका आभार ।

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:46pm

वाह बहुत शानदार ग़ज़ल है
आख़िरी शेर बहुत प्यारा है

समर साहब की इस्लाह से इत्तेफ़ाक है 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 17, 2015 at 9:27pm

आप के पीछे चली आयी बहार

और मौसम शाइराना आ गया

वाह! आदरणीय बहुत सुन्दर गज़ल हुयी है,शेर दर शेर दिली दाद प्रेषित है!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 7:03pm
  1. आ0 भण्डारी भाई जी, बेहतरीन गज़ल हेतु दाद कुबूल फरमाए. सादर
Comment by narendrasinh chauhan on June 17, 2015 at 5:35pm

रफ़्ता रफ्ता रास्ता कटता गया

और अपना भी ठिकाना आ गया

लाजवाब बहोत खूब

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 5:33pm
क्या बात है आदरणीय एक बढ के एक गजल वाह आप तो गजल सागर में डूब गये

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 5:23pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपके स्नेह और सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 5:22pm

आदरनीय समर कबीर भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ॥ आपने सही कहा है  , मै शब्द को बदल के जादू गरी कर लूंगा । मै अभी तक दोनो को समानार्थी समजह्ता था । आपका शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 5:20pm

आदरणीय शयाम नारायण भाई , सराहना और उत्सह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2015 at 5:04pm

आ० अनुज

शाट पर शाट ,रुकने का नाम नहीं , बहुत उम्दा गजल

हाथ कासे तक गया तो था मगर  

याद अपना फिर घराना आ गया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
11 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
19 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service