For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्याह धब्बा

ढलते सूरज-से रिश्ते की बुझती लालिमा

सिकुड़ती सिमटती जा रही

अनकही बातों के अरमानों की

अप्राकृतिक अकुलाहट

अपने ही कानों में भयानक

दुर्घटना-सी

अमावस-सी अँधियारी कसकती रात

डरता है व्याकुल बेसुध मन

कि अब तुम नहीं हो पास

बहता है दुख

बेचैन बदनसीब रिश्ता ...

अब स्याह धब्बे-सा

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 13, 2015 at 11:37pm

आदरणीय गोपाल नारायन जी, मेरी भावनाओं को पूज्य जयशंकर प्रसाद जी के साथ नाम दे कर आपने मुझको बहुत मान दिया है... आँखें भीग गयी हैं। आपका हार्दिक आभार।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 11:11pm

न होना के बाद होने का अहसाह होना बहुत कष्टदायक होता है!सुन्दर रचना! हार्दिक बधाई आ० विजय निकोर ज़ी!

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2015 at 11:29pm

रिश्ते जो रह नहीं पाते ,
कैसे ढलते, धूमिल हो जाते,
रंगत उड़ जाती,नहीं फिर भी जाते,
इक धब्बे से रह जाते.
बहुत खूब, क्या खूब लिखा है आपने आदरणीय विजय निकोर जी , बधाई, सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2015 at 12:40pm

आदरणीय निकोर जी

काश मैं  आपका दर्द बाँट पाता . आप जैसी पीड़ा जयशंकर प्रसाद की भी थी . वह् कहते  हैं -

रों रो कर सिसक सिसक कर कहता मैं करुण  कहानी

तुम   सुमन   नोचते   सुनते    करते   जानी   अनजानी   ---------------सुमन नोचना निष्ठुरता का प्रतीक . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service