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जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा
जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा
भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक
माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा
आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है
माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा
मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा
मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज तक
बीज नफरत के नहीं सोचा था यूं बो जायेगा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सच कहूँ तो मुझे कुछ प्रभावित नहीं कर सकी यह ग़ज़ल, मतला पढने के बाद ही जद्दोजहद शुरू हो जाता है कि आखिर शायर कहना क्या चाह रहा है. हो सकता है और मित्रों को ग़ज़ल अच्छी लगे, सादर.
आदरणीय आशुतोष जी सुन्दर ग़ज़ल हुई है बधाई
आदरणीय समर कबीर जी की बात पर गौर अवश्य कीजियेगा
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई सादर |
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