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गीत / नवगीत - क्या ये मेरा वही गाँव है --- गिरिराज भंडारी

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

क्या ये मेरा वही गाँव है

सूरज अलसाया निकला है

मुर्गा बांग नहीं देता है 

नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं

ना कौवे की काँव काँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

दो पहरी सोई सोई है

दिवा स्वप्न में कुछ खोई है

यहाँ धूल में सनी उदासी

चौराहों के थके पाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

गुम्बद भी है सूना सूना

मीनारों का है दुख दूना

चौपालों मे बढ़ी सियासत

अब बरगद में कहाँ छाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

 

गोधूली में धूल नहीं है

कोई क्यारी फूल नहीं है

गाँव-गली में शहर चीखता

बीच भँवर में फँसा गाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

 

नदी ताल  है सूने सूने

घट पनिहारिन के हैं ऊने

खुद के लाये तूफानों में

पास किनारे फँसी नाव है

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

फ्रिज टीवी मोबाइल आई

संस्कृति बाहर की समझाई

परंपरायें पूछ रहीं है

क्या ये अपना वही ठाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 753

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 10:00pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गीत की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 12, 2015 at 9:06pm

बहुत सुंदर रचना ,सर. आज के गाँव में कई परिवर्तन आ चुके है. आधुनिकता ने पाँव जो पसार लिए है गाँव में भी. बधाई सर ,प्रस्तुति पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:28pm

आदरणीय नीरज नीर  भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:27pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:26pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:25pm

आदरणीय समर कबीर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:24pm

आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई का हौत शुक्रिया ॥

Comment by Neeraj Neer on April 12, 2015 at 8:04pm

वाह बहुत सुंदर गीत.... गाँव के बदलते परिवेश को बाखूबी बयान करती हुई ॥ हार्दिक बधाई आदरणीय । 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 5:00pm
बदलते परिवेश का सुन्दर चित्रण, बधाई, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।
Comment by shree suneel on April 12, 2015 at 3:43pm
पुराने प्रिय दृश्य जब लुप्त हो जाते हैं तो ऐसे ही भाव मन में उभरते हैं, आ0.
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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