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जनाब निर्मल नदीम जी,आदाब,
"ग़ज़ल कहना नहीं है खेल कोई
सुना तुमने,"समर" क्या बोलता है"
नदीम जी,15 साल की उम्र से ग़ज़ल कह रहा हूँ,शाईरी मुझे विरसे में मिली है,10 मुस्तनद उस्तादों की गोद में पल कर बड़ा हुवा हूँ,शाईरी के पचास साला अदबी सफ़र में एक मिसरा भी बह्र से ख़ारिज नहीं कहा है |
आप कहते हैं मेरा ये मिसरा :-
"तिरी शक्ति है अपरम पार मौला"
बह्र से ख़ारिज है,जबकी ऐसा है नहीं,"शक्ति" शब्द उर्दू में चार हरफ़ी है,इस लिहाज़ से ये मिसरा बह्र से ख़ारिज नहीं है,मैने ये मिसरा जान बूझ कर हिन्दी शब्दों में लिखा,मैं चाहता तो इस मिसरे को उर्दू अलफ़ाज़ से भी सजा सकता था,अब रही बह्र के अरकान लिखने की बात,आपने लिखा है कि मैने बह्र ग़लत लिखी है,इस बह्र के अरकान फ़ऊलुन फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन बिल्कुल सही है,इसे इस तरह भी लिख सकते हैं :-
"मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन",जैसा की आपने लिखा है,यह भी ठीक है,जनाब सौरभ पाँडे जी ने मेरी पिछली ग़ज़ल जो इसी बह्र में थी,इस तरफ़ हल्का सा इशारा मुझे दिया था,मुझे वहीं इस बात की वज़ाहत कर देना थी,आज ग़ज़ल का हर पाठक ग़ज़ल पढ़ने से पहले ही उसपर तनक़ीद का मन बना लेता है फिर ग़ज़ल पढ़ता है,और कोशिश करता है की अपने ज्ञान के मुताबिक़ उसमें कोई ऐब निकाल कर बताए,इस तरह वो ग़ज़ल से कोई फ़ैज़ हासिल नहीं कर पाता,ग़ज़ल उर्दू की सिन्फ़ है,इसे किसी भी भाषा में कहो क़दीम पैमाने पर ही रखना होगा,आपने मेरी ग़ज़ल में शिर्कत की,मेरी हौसला अफ़ज़ाई की इसके लिये मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
वाह वाह जनाब मतले का शेर क्या गज़ब ढा रहा है ..... बहुत गहरे अर्थ लिए ..... सभी कहते हैं अच्छा बोलता है
जो हम बोलेंगे तोता बोलता है........ दिली दाद मेरी ओर से ॥
छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है--------वह वह कबीर साहेब , बेहतरीन .
वााहहहहहहहहहहह वाहहहह
बंधे हैं एकता की डोर से हम
गवाही में तिरंगा बोलता है
बंधे हैं एकता की डोर से हम
गवाही में तिरंगा बोलता है..बेहतरीन
कोई महमान आने को है शायद
हमारी छत पे कौआ बोलता है... बहुत बढ़िया आदरणीय समर जी इस अच्छी ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है जनाब क्या कहने वाः वाह वाह। बधाई स्वीकारें।
आपका ध्यान एक शेर पे चाहूंगा। आपने लिखा है
तिरी शक्ति है अपरम पार मौला
तिरे आगे तो गूंगा बोलता है
यहाँ शक्ति शब्द से मिसरा ख़ारिज हो रहा है क्योकि शक्ति का वज़न २ १ होता है जबकि आपने २२ पे लिया है। कुछ लोग इस तरह भी लिखते है लेकिन जहाँ तक मेरा मानना कि ग़ज़लों में अपभ्रंश शब्द नही इस्तेमाल करते। इससे ग़ज़ल की स्वाभाविकता नष्ट होती है। इसे इसप्रकार ले सकते है , अगर आपको अच्छा लगे
तेरी ताक़त है लामहदूद मौला
तेरे आगे तो गूंगा बोलता है।
आपने बहर ग़लत लिखी है ये यूँ होती है
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन
बहुत बहुत बधाई। शुक्रिया।
मैं सच्चाई की बातें कर रहा हूँ
समझते हैं दिवाना बोलता है
छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है
कोई महमान आने को है शायद
हमारी छत पे कौआ बोलता है --- आदरनीय समर भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है , दिली मुबारक बाद हरेक शे र के लिये !!
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