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लोग मिलते हैं अक्सर यहाँ मुहब्बत से
दिल हैं मिलते यारब बड़े ही मुद्दत से।
आज कल शामें हैं उदास बेवा सी
याद आये है कोई खूब सिद्दत से।
कोई होता है किस कदर अदाकारां
हम रहे इक टक देखते सौ हैरत से।
उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद
पेश आया मुझसे बड़े ही इज्जत से।
लबसे तेरे हय शोख़ गालियाँ जाना
बस रहे हम ता-उम्र सुन ते लज्ज़त से।
बारहाँ पटके है उसी के दर पे सर
बाज आये ना हम खुदाया उल्फ़त से।
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
आ० प्रतिभा त्रिपाठी जी रचना पर मुक्त हृदय से सराहना के किये बहुत बहुत आभार!!
आदरणीया निधि अग्रवाल जी हौसलाफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया!आभार!
आ० vijai shanker जी रचना प्र आपकी उपस्थिति मन हर्षित करती है!स्नेह बनाये रखे! बहुत बहुत आभार!सादर!
आ० shyam mathpal जी हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया!आभार!!
आदरणीय Hari Prakash Dubey बहुत बहुत आभार! स्नेह बनाये रखें!
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी सरहना से मन हर्षित हुआ,रचनाकर्म सार्थक हुआ!बहुत बहुत आभार!!सादर.
भाई महर्षि ! रचना पर आपकी प्रतिक्रिया और उत्साहवर्धन के लिए आभार!
Shyam Narain Verma जी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार!!
आ०लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!आभार!!
आदरणीय गिरिराज सर जी! रचना पर आपका विश्लेषण पाकर मन हर्षित हुआ!!बहुत बहुत आभार!
>>जहाँ तक बात है स्वाभाविक प्रवाह की,तो बहर में लिखना शुरू ही किया है! धीरे धीरे प्रवाह बनता जायेगा!!
>>बहर को निभाहने की जहाँ तक बात है तो पहले मै अपनी रचना को स्वतः जस के तस जैसे मन में शब्दों की गिरह लगती जाती है अपनी धुन में लिखता हूँ!फिर उनको मात्रा के हिसाब से किस बहर में लिखी जा सकती है या रक्खी जा सकती है के अनुरूप ढालने का प्रयास करता हूँ!जिससे कुछ बनावट गजल में स्वाभाविक तौर पर आ जाती है!गुरुवर और कोई तरीका हो तो बतायें!
>>कुछ दिन पहले किसी बहर को चुन कर उस पर लिखने का प्रयास सीखने के तहत किया था!आपकी पारखी नजर ने यह बात वहीँ पकड़ी है! पर इस गजल के सम्बन्ध में ऐसा कुछ नही है के पहले से निश्चित बहर में मैंने शब्द भरे हों!
>>कुछ शब्द को जानबूझकर ऐसे मैंने लिखा है जैसे अदाकारा को अदाकारां ध्वनी तरन्नुम में करने के लिए//शर्मसार को शर्मसां बाबहर करने के लिए(शब्दों को बाबह्र करने के लिए परिवर्तन तो अकसर देखने में मिल जाते है जैसे मुहब्बत/मोहब्बत/महोब्बत)//बारहाँ तो कई दीवान में छपा देखा है इसलिये वैसा लिखा!!
आदरणीय हर रचना अपनी पूरी निष्ठा से और जितना संभव हो उस समय देकर ही प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूँ!!
सीखने के सन्दर्भ में बीच में कुछ अपरिपक्व रचनाये अवश्य प्रस्तुत की थी! पर हर रचना में अपना १००% रखने का प्रयास रहता है
बाकी जो भी कमी है वो मेरी अल्पबुद्धि का परिणाम है,वख्त के साथ शायद वो दूर होती जायें!
आदरणीय सरजी इसी प्रकार अपना स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखें!!
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