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रेखागणित क्या है ?

मै नहीं जानता

रैखिक ज्ञान का पारावार है

मान लेता हूँ

मेरे लिए रेखा मात्र रेखा है

सरल या विरल

सरल यानि मिलन से दूर

मिलन के लिए सरलता नहीं

तरलता चाहिए

अकड़ नहीं विनम्रता चाहिए

इसीलिये सरल रेखा

मुड़ कर ही मिल पाती है

वह भी स्वयं से

उसका पोर-पोर ही है मिलन बिंदु

जिसका चरम रूप है वृत्त

वृत्त क्या ? महज एक शून्य

शून्य अर्थात शून्य

स्वयं से मिलन का अर्थ I

 

दो सरल समांतर रेखाये 

भी नहीं मिलती

साथ-साथ चल सकती है

अनंत तक

अकड़ मिलने नहीं देती

पर दो तिरछी रेखाएं भी पर्याप्त नहीं है

एक परिपूर्ण मिलन के लिए

यदि उनकी दिशायें भिन्न हैं

पहुँच से परे हैं

सहज नहीं है दो रेखाओं का मिलन

द्वाधिक रेखायें भी तभी मिलती हैं

जब उभयनिष्ठ हो उनका एक बिंदु

तब रेखायें मिलती भी हैं

और काटती भी हैं

मानो यह भी सृष्टिगत प्रणय है

पर संक्रमण बिंदु से

कौन कितना दूर है

इससे फर्क पड़ता है

सम्बन्ध की प्रगाढ़ता का

यह भी मानदंड है  I   

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

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Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 1:08pm

सहज नहीं है दो रेखाओं का मिलन

द्वाधिक रेखायें भी तभी मिलती हैं

जब उभयनिष्ठ हो उनका एक बिंदु

तब रेखायें मिलती भी हैं

और काटती भी हैं

मानो यह भी सृष्टिगत प्रणय है

पर संक्रमण बिंदु से

कौन कितना दूर है

इससे फर्क पड़ता है

सम्बन्ध की प्रगाढ़ता का

यह भी मानदंड है  I   ...वाह  कितना खुबसूरत बिम्ब के साथ सम्बन्धो को परिभाषित किया है ..गणित जैसे शुष्क विषय को बिम्ब बनाकर रोचक और गंभीर कविता के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on September 29, 2014 at 5:27pm

" बहुत सुन्दर ........ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ................. "

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 28, 2014 at 11:55pm
"मिलन के लिए सरलता नहीं
तरलता चाहिए
अकड़ नहीं विनम्रता चाहिए
इसीलिये सरल रेखा
मुड़ कर ही मिल पाती है"
बहुत सही आकलन है आपका आदरणीय डॉo साहब , समानांतर चलना और साथ चलना भी अलग अलग होता है , मिलन के लिए थोड़ा सहनशील होना ही पड़ता है , जो हमसे रास्तों में टकराते हैं वो भी कुछ प्रभाव छोड़ जाते हैं , भले ही वो हमसे तिर्यक हों।
प्रसंगतः यह भी दिमाग में आ रहा है कि जीवन में गणित हर जगह हावी होता जा रहा है , नापतौल, मूल्यांकन , बीमारियों का परीक्षण सब कुछ डिजिटल होता जा रहा है , मोबाइल से लेकर हर चीज के नंबर हैं , आदमी की पहचान भी नम्बरों में सीमित रह गयी है .
बहुत बहुत बधाई इस नव प्रयोग के लिए ,शुभकामनाएं .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 28, 2014 at 11:18pm

संबंधों की पराकाष्ठा को रेखागणित की भाषा में बहुत ही सुन्दरता से समझाया आपने आदरणीय डा.गोपाल जी. सादर बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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