ऊपर क्या है
सुनील आसमान I
तारक , सविता , हिमांशु
सभी भासमान I
बीच में क्या है ?
अदृश्य ईथर
कल्पना हमारी I
क्योंकि
ध्वनि और प्रकाश
नहीं चलते बिना माध्यम के
वैज्ञानिक सोच है सारी I
नीचे क्या है ?
सर ,सरि, सरिता, समुद्र, जंगल, झरने
उपवन में है पंकज, पाटल ,प्रसून
आते है मिलिंद, मधु-कीट, बर्र
तितलियाँ रंग भरने I
चारो ओर मैदान, पठार .पर्वत, प्रस्तर
घाटी, गह्वर, उपत्यिकाये
खेत-खलिहान, झाड़ी, वनस्पतियाँ, पेड़ –पौधे,
बालियां पवन-घात से लहराये I
इधर घर-घरौंदे, मकान, झोपडी
खोली, बस्ती, नगर, महानगर
मेंड़, गली-गलियारा, पथ, डगर I
असंख्य जीव, घरेलू ,पालतू ,
काम में आनेवाले और हिंस्र जीव
सबसे अलग एक वह
मेधा से क्रियमाण ------
है कही कोई साम्य ?
विषमताओ से भरा है यह
सम्पूर्ण जगत, समूचा ब्रह्माण्ड
तो क्या यह है वह पहला और शाश्वत कोलाज
जिसे ईश्वर ने बनाया !
.
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
छाया जी
आपका कृतज्ञ हूँ i
राम शिरोमणि जी
आपक हार्दिक आभार i
है कही कोई साम्य ?
विषमताओ से भरा है यह
सम्पूर्ण जगत, समूचा ब्रह्माण्ड
तो क्या यह है वह पहला और शाश्वत कोलाज
जिसे ईश्वर ने बनाया ! ... अतीव सुंदर प्रश्न जी यह कोलाज़ ही तो है ड़ोय शक्ति निर्मित सादर बधाई स्वीकारें नमन !
वाह क्या कहने आदरणीय। . अनुपम रचना। हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय गोपाल नारायण जी सादर,
कला दीर्धाओं में सुन्दर कोलाज जिसप्रकार मुकुट में जड़े रत्न की भाँती चमकते है ठीक उसीप्रकार आपकी यह कविता भी चमक रही है. आदरणीय इस बेहतरीन प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें.
महनीया
देर से ही सही i मुझे आशीर्वाद तो मिला i सादर i
वाह वाह सच में यही है वो शाश्वत कोलाज ...आपके शब्दों के माध्यम से देख भी लिया महसूस भी कर लिया प्रशंसनीय प्रस्तुति बहुत पसंद आई हाँ देर से पढने का अफ़सोस है |बहुत बहुत बधाई आ० डॉ गोपाल नारायण जी .
सादर आभार आदरणीय गोपाल नारायनजी.
आदरणीय सौरभ जी
आपसे प्रोत्साहन मिलना एक उपलब्धि लगती है i लगता है जैसे पूर्णांक मिल गया हो i आपका स्नेह मेरी रचनधर्मिता को निरंतर उर्जस्वित करे , यही कामना है i सादर i
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