For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.

हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,

आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,

यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,

रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से यही करवा रही है बेबसी.

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 813

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on April 19, 2014 at 8:39pm

लाजबाब अरुन जी वाहहहहहहहह 

आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको

कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी------वाह 
वाहहहहहहहहहह

Comment by बृजेश नीरज on April 19, 2014 at 8:10pm

वाह! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! सभी अशआर बहुत ही खूबसूरत हैं!

आपको बहुत-बहुत बधाई, अरुण भाई!

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:58pm


आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,.........खूबसूरत ग़ज़ल

Comment by coontee mukerji on April 19, 2014 at 7:01pm

बहुत बहुत सुंदर गज़ल......हार्दिक  बधाई.

Comment by वेदिका on April 19, 2014 at 6:55pm
वाह! क्या अशआर सहेजे है
बधाई आ0 अरुण अनंत जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 19, 2014 at 6:19pm

वाह्ह वाह... प्रिय अरुन शर्मा बहुत शानदार गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कही है|सभी अशआर सुन्दर हुए हैं ---एक परामर्श देना चाहूँगी

ये मिसरा यदि ऐसे लिखें तो ठीक न होगा?? --- आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों  की नदी,-----आँखों और निगाहों में फर्क होता है 

बहुत- बहुत दाद कबूलें इस सुन्दर ग़ज़ल पे 
-

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 5:06pm

आदरणीय मुकेश भाई जी आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा, ग़ज़ल आपको मुकम्मल लगी लेखन कार्य सार्थक हुआ. बहुत बहुत धन्यवाद मित्र

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 5:05pm

हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 19, 2014 at 4:47pm

आदरणीय अरुण जी
बहुत उम्दा और मुक़म्मल ग़ज़ल कही है आपने.
उम्दा बयानी का मुज़ाहिरा किया है आपने.
दिल खुश कर दिया आपने.. बहुत बहुत मुबारकबाद

हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,

रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से यही करवा रही है बेबसी.  ..  क्या कहने..

Comment by Sarita Bhatia on April 19, 2014 at 3:49pm

बढ़िया अशआर 

दिल की बात दिल तक 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service