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राजरानी के नवासे आप हैं - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122        2122     2122      212


जानता  हूँ  देह   के  बेलौस  प्यासे  आप  हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं

*
खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते  यूँ बहुत पीडि़त  जरा से  आप है

*
राह में उगते  बबूलों  को  तुम्हीं  सीचा  किये
किसलिए  फिर दर्द  पर  मेरे  रुआँसे आप हैं

*
आपका रुतवा सियासत में है केवल इसलिए
देश   कहता  राजरानी  के  नवासे  आप   हैं

*
कह रहे मुझको तमाशेबाज , तुम भी खूब हो
पर हकीकत  रोज करते  तो तमाशे  आप हैं

*
जानते हो  खुद के  बारे भाग दसवाँ भी नहीं
और  मेरी फितरतों के  सौ खुलासे  आप  हैं

रचना मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 11, 2014 at 11:12pm

राह में उगते  बबूलों  को  तुम्हीं  सीचा  किये
किसलिए  फिर दर्द  पर  मेरे  रुआँसे आप हैं............वाह! बहुत खूब

कह रहे मुझको तमाशेबाज , तुम भी खूब हो
पर हकीकत  रोज करते  तो तमाशे  आप हैं............वाह! क्या बात कही 

बहुत खुबसूरत गजल कही, हर एक शेर सच की  कटुता के शीर्ष पर है. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय लक्ष्मण जी

 

Comment by Meena Pathak on April 11, 2014 at 7:35pm

क्या बात है ,,, बहुत खूब ... बधाई आप को ढेरों | सादर 

Comment by कल्पना रामानी on April 11, 2014 at 7:31pm

हर शेर बेहतरीन है, आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत बहुत बधाई आपको। शिज्जु जी के बताए शेर के अलावा तीसरे शेर में 'रूआँसे'शब्द पर भी गौर कीजिएगा/सादर


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 11, 2014 at 3:54pm

आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है सारे अशआर अच्छे लगे। खासतौर पर मतले में आपने बेहतरीन सामयिक शेर निकाला है।
एक जगह मैं अटक गया पाँचवा शेर, वैसे तो बहुत अच्छी बात कही आपने शिल्प के लिहाज से भी खूबसूरत और स्पष्ट है मगर इस ग़ज़ल का हिस्सा बनने के बाद "शे" हर्फे कवाफी से ऐब बन रहा है।

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