नवगीत--झील चुप सी.......!
झील चुप सी राह तकती,
नाव डगमग
भाव भर कर
राज सारे पूछती है।
रेत फिसली
तट सॅवर कर,
हाथ पल पल
धो रही नित,
मल घुला जल
विष भरे तन
मीन प्यासी कोसती है।।1
सूर्य किरनों से
पिए नित रक्त
नदियों के बदन का,
धर्म की
पतवार भी अब
तीर सम तन छेदती है।।2
वन-सरोवर
तन उचट कर
छॉंव गिर कर
दूर जाती।
प्रेम का
सम्बन्ध रचकर
सांझ तक मन सोखती हैं।।3
रात सज कर
जब मचलती,
दौर पर तब
दौर चलते
घूस-बलवा
तेल पीकर,
दीप की लौ झूमती है।।4
सिर चढ़ी मय
जिद करे अब
मन उमंगे
वाह! करती
नाचते दंगें
उछल कर
आह! भरती चॉंदनी है।5
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 आशीष भाई जी, सादर प्रणाम! नवगीत पर आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 महिमा श्री जी, सादर प्रणाम! नवगीत पर आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
रात सज कर
जब मचलती,
दौर पर तब
दौर चलते
घूस-बलवा
तेल पीकर,
दीप की लौ झूमती है।
सुन्दर नवगीत भाई !!
आदरणीय केवल जी बेहद सुंदर भावयुक्त नवगीत हार्दिक बधाई आपको सादर
आ0 विजय भाई जी, नवगीत के प्रति स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 विन्ध्येश्वरी भाई जी, आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 आशुतोष भाई जी, आपका नवगीत के प्रति लगाव को देख कर मुझे बड़ी खुशी मिली। आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार। भाई जी- नवगीत पर आ0 डा0 प्राची सिंह जी के लेख नवगीत की विधा पर काफी चर्चा इसी ओ बाी ओ के पटल पर हो चुका है। जिसे मैं खोज नहीं पाया। कृपया आप आदरणीया जी अथवा आ0 सौरभ सर जी से नवगीत का लिंक पूॅंछ लीजिए,। आपको तत्काल उपलब्ध हो जाएगा। सादर,
आदरणीय केवल जी ..बहुत ही मधुर नवगीत ..गुन्गुनानते हुए बेहद आनंद आया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें .सादर एक निवेदन भी कर रहा हूँ नव गीत के बिषय में बिस्तार से जान्ने के लिए कोई लिंक हो देने का कष्ट कीजियेगा ..
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