For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - नाफरमानी लिखना (अरुन श्री)

आह   लिखो , हुंकार   लिखो ,  कुर्बानी  लिखना

बंद    करो   किस्सों   में    राजा  रानी  लिखना

 

सूखे   खेतों   की   किस्मत  में   पानी  लिखना

अब   लिखना  तो  पीलेपन  को  धानी  लिखना

 

और   भी   हैं   रिश्ते यारों  तुम  छोडो  भी अब

महबूबा   के    दर   अपनी    पेशानी    लिखना

 

मानवता   उन्वान ,  भरा  हो   प्रेम   कहन  में    

अपना   जीवन   ऐसी   एक   कहानी   लिखना

 

जब भी  तुम अपने लब पर मुस्कान लिखो तब

मेरे   माथे   पर   भी   कुछ   ताबानी   लिखना

 

जो  कर  दें   दरबारी   धार  कलम   की ,  ऐसे -

शाही    फरमानों    पर    नाफरमानी   लिखना
.
.
................................................. अरुन श्री !
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 845

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on January 22, 2014 at 12:34pm

आशीष नैथानी 'सलिल' भाई , सराहने के लिए धन्यवाद आपको !

Comment by Arun Sri on January 22, 2014 at 12:33pm

gumnaam pithoragarhi सर , बहुत बहुत धन्यवाद आपको !

Comment by Arun Sri on January 22, 2014 at 12:32pm

गिरिराज भंडारी  सर , हौसला बढ़ाया आपने ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on January 22, 2014 at 12:22pm

Rahul Dev  सर
सराहने के लिए बहुत धन्यवाद आपको !

Comment by नादिर ख़ान on January 22, 2014 at 8:56am

मानवता   उन्वान ,  भरा  हो   प्रेम   कहन  में    

अपना   जीवन   ऐसी   एक   कहानी   लिखना

आदरणीय अरुण जी उम्दा गज़ल के लिए बधाई स्वीकारें ।

Comment by vijay nikore on January 22, 2014 at 8:06am

खूबसूरत गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vandana on January 22, 2014 at 6:52am

मानवता   उन्वान ,  भरा  हो   प्रेम   कहन  में    

अपना   जीवन   ऐसी   एक   कहानी   लिखना

वाह आदरणीय अरुण जी शानदार ग़ज़ल बहुत२ बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2014 at 6:47am

आदरणीय  अरुण  भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है . हर बेमिसाल शे र के लिए  हार्दिक बधाई स्वीकारें l

Comment by वीनस केसरी on January 22, 2014 at 12:32am

वाह भाई क्या धारदार ग़ज़ल कही है ... मज़ा आ गया

शाही    फरमानों    पर    नाफरमानी   लिखना .. वाह भाई वाह

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 21, 2014 at 11:55pm

आह   लिखो , हुंकार   लिखो ,  कुर्बानी  लिखना

बंद    करो   किस्सों   में    राजा  रानी  लिखना

बढ़िया ग़ज़ल भाई !
दाद क़ुबूल हो !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार ।नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
29 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service