For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चिड़िया के दो बच्चों को

पंजों में दबाकर उड़ गया है एक बाज

 

उबलने लगी हैं सड़कें

वातानुकूलित बहुमंजिली इमारतें सो रही हैं

 

छोटी छोटी अधबनी इमारतें

गरीबी रेखा को मिटाने का स्वप्न देख रही हैं

पच्चीस मंजिल की एक अधबनी इमारत हँस रही है

 

कीचड़ भरी सड़क पर

कभी साइकिल हाथी को ओवरटेक करती है

कभी हाथी साइकिल को

 

साइकिल के टायर पर खून का निशान है

जनता और प्रशासन ये मानने को तैयार नहीं हैं

कि साइकिल के नीचे दब कर कोई मर सकता है

 

अपने ही खून में लथपथ एक कटा हुआ पंजा

और मासूमों के खूब से सना एक कमल

दोनों कीचड़ में पड़े-पड़े, आहिस्ता-आहिस्ता सड़ रहे हैं

 

कच्ची सड़क पर एक काली कार

सौ किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भाग रही है

धूल ने छुपा रखी हैं उसकी नंबर प्लेटें

 

कंक्रीट की क्यारियाँ सींचने के लिए

उबलती हुई सड़क पर

ठंढे पानी से भरा हुआ टैंकर खींचते हुये

डगमगाता चला जा रहा है एक बूढ़ा ट्रैक्टर

 

शीशे की वातानुकूलित इमारत में

सबसे ऊपरी मंजिल पर बैठा महाप्रबंधक

अर्द्धपारदर्शी पर्दे के पीछे से झाँक रहा है

उसे सफेद चींटी जैसे नजर आ रहे हैं

सर पर कफ़न बाँधे

सड़क पर चलते दो इंसान

 

हरे रंग की टोपी और टी-शर्ट पहने

स्वच्छ पारदर्शक पानी से भरी

एक लीटर और आधा लीटर की

दो खूबसूरत पानी की बोतलें

महाप्रबंधक की मेज पर बैठी हैं

उनकी टी शर्ट पर लिखा है

पूरी तरह शुद्ध, बोतल बंद पीने का पानी

अतिरिक्त खनिजों के साथ

 

उनकी टी शर्ट पर पीछे की तरफ कुछ बेहूदे वाक्य लिखे हैं

जैसे

सूर्य के प्रकाश से दूर ठंढे स्थान पर रखें

छः महीने के भीतर ही प्रयोग में लायें

प्रयोग के बाद बोतल को कुचल दें

 

केंद्र में बैठा सूरज चुपचाप सब देख रहा है

पर सूरज या तो प्रलय कर सकता है

या कुछ नहीं कर सकता

 

सूरज छिपने का इंतजार कर रही है

रंग बिरंगी ठंढी रोशनी

------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 865

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:46pm

बहुत बहुत धन्यवाद Kapish Chandra Shrivastava जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:41pm

आदरणीया vandana जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:41pm

बहुत बहुत धन्यवाद विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 3:35pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, कविता आजके बेढंगे विकास की खबर तो लेती ही है, व्यवस्था, प्रशासन और सरकार की सोच पर भी खूब बरसी है. किनके लिए विकास और कैसा विकास ! .. वाह !!

ऐसी रचनाओं को लिखने की क्षमता अनायास नहीं आ जाती. अक्सर, ऐसी रचनाएँ कविता कम भाषणबाज़ी अधिक हो जाती हैं.

इस पंक्ति ने तो समझिये हिला कर रख दिया -
छोटी छोटी अधबनी इमारतें
गरीबी रेखा को मिटाने का स्वप्न देख रही हैं
पच्चीस मंजिल की एक अधबनी इमारत हँस रही है

साढ़े पाँच से साढ़े नौ हज़ार के औसत दरमाहा में (सैलरी) में युवाओं को बंधुआ बना कर उनके परिवारों को बीपीएल से एपीएल की भाँड़ में झोंकने की क़वायद को ग्रामीण विकास कहते नहीं अघा रही.. न व्यवस्था, न ही सरकार !

केंद्र में बैठा सूरज चुपचाप सब देख रहा है
पर सूरज या तो प्रलय कर सकता है
या कुछ नहीं कर सकता
ओह्होह ! क्या ग़ज़ब की पकड़ है ! ग़ज़ब का व्यंग्य है !

और आइसिंग ऑन द केक -
सूरज छिपने का इंतजार कर रही है
रंग बिरंगी ठंढी रोशनी

आपकी संवेदनशील दृष्टि के प्रति आभार और इस आजकी रचना पर आपको हार्दिक बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 12:40pm

विकास का आधुनिक चेहरा प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति 

शुभकामनाएं आ० धर्मेन्द्र जी 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 4:00am

वाह..... एक 'सुपरहिट' प्रस्तुति आदरणीय धर्मेन्द्र जी....... बहुत ही करारा प्रहार किया है आपने..... कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं..... जैसे..

अपने ही खून में लथपथ एक कटा हुआ पंजा

और मासूमों के खूब से सना एक कमल........ यहाँ शायद 'मासूमों के खून' से सना होना चाहिए..... इसी प्रकार अंतिम पंक्ति में 'ठंडी' के स्थान पर 'ठंढी' थोड़ा अखर रहा है...... लेकिन भाव एवं प्रस्तुति ने तो मुग्ध कर दिया है..... इस सुपरहिट प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय.....

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 5:14pm

आदरणीय निःशब्द कर दिया आपने अतुकांत रचना की शैली देखते ही बनती है भाव तो इतने गहरे हैं कि क्या कहूँ !!! कविता का शीर्षक नोएडा ही क्यूँ आदरणीय यह समझ नहीं आया. बहरहाल कविता ने मन मोह लिया दिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 4:40pm

लाजवाब व्यंग्य ...सारे तीर निशाने पर लगे हैं ..आदरणीय धर्मेन्द्र जी हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 13, 2013 at 8:38am

सचमुच की प्रगतिशील कविता ...... बधाई स्वीकारें !!!

Comment by ajay sharma on October 11, 2013 at 10:58pm

gambhir aur sashakt vicharo, binbo, pratiko se tamam visangatiyo ka chitran aur un par karara prahar ......badhayi...sweekare

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
11 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service